Friday, December 23, 2022

राम

दीवार पर  लिखा 'राम'
राम नहीं है
वह है सिर्फ कुछ  स्याही
और शब्द विज्ञान से जन्मी छाप!

आदमी शब्द को पहचानता है
पहले आकार से, फिर नाम से 
तब जन्मता है शब्द जिब्हा से

शब्द की आत्मा उच्चारण है
और आत्म की खोज राम!

'गुलाब' को गुलाब पढ़ना, शब्द विज्ञान है 
किन्तु मन में सुगंध का भर जाना,  राम है |

~Rahul

Sunday, September 4, 2022

जूते के काटने पर

 

जब मनुष्य ने उसे खोजा
वह वरदान साबित हुआ
उसने मनुष्य की यात्रा को
बहुत आसान बना दिया
तेरे और मेरे जैसे अनेकों को
वो नित पंहुचा रहा है
अपनी अपनी मंज़िल।

लेकिन उसे कभी वो सम्मान नही मिला
जो उसे मिलना चाहिए
उसे सिर्फ नीचा रखा गया
बाहर सीढ़ियों पर,
बाकी भिखारियों की तरह...
उसे मंदिर में जाने की अनुमति नही।

जब दाबतों में लोग पंक्तिबद्ध बैठे होते हैं
वो शामियाने के बाहर पड़ा रहता है
आंखे गड़ाये आसमान की तरफ
भगवान शायद कभी उसके मन की भी सुने।

रात में जब मैं सोता हूँ
वो पूरी रात मानो करता है
मेरी चारपाई की
निःस्वार्थ चौकसी!

कभी कभी स्वार्थी मानुस ने
उसका स्वार्थमय उपयोग भी किया
भरी सभायों में उसे पहुँचा यागया है
मंचों पर....
कुर्सी पर बिठाने को नही
कुर्सी पर बैठे नेता के तमाचा धरने को
फिर नेपथ्य में खो जाने को।

सरकारी दस्ताबेज आपको नही बताएंगे
लेकिन भगदड़ों में सबसे ज्यादा मौतें
उसी ने सही हैं।

मुझे बुरा नही लगा
आज जब मेरे पैर में
जूते ने काटा...
इसमे जूते की क्या गलती, गलती मेरी है
जूते के हिसाब से जो होनी थी, क्या मेरी तैयारी है?

उसके अहसानों के तले
मेरे पुरखे और उनके पुरखे तक
नख शिख तक दबे हुए हैं, मानो तो...
वरना दो कौड़ी के जूते तेरी औकात ही क्या
जब तुझसे पहले ही कितने नर नारी
ऊँचो के नीचे धसे हुए हैं, मानो तो...
तू पैरों की जूती, तुझमे कोई बात ही क्या?

किसी राजा ने यदि कभी जूतों को सम्मान दिया
वो हैं भरत, पादुकाओं को जिसने अपने शीश लिया
राम पादुका से पहले, वो भी जूते हैं
सच कि राजा रंक सब उनको छूते हैं।

~राहुल

Saturday, July 30, 2022

प्रेम


नग्न देह और खाली पेट
प्रकृति के अ, आ हैं
क से कपड़ा, ख से खाना
र से रोटी, प से पाना
प्रकृति की शेष वर्णमाला।
इसके आगे जो भी है वो कृत्रिम है
लेकिन कृत्रिमता कभी परम नही
इसका उद्गम भी प्रकृति ही है
जैसे शब्दकोष और वर्णमाला।

कृत्रिमता जीवन को सुगम करती है
जैसे शब्दकोश से विचारों की अभिव्यक्ति...
और इससे आगे गीत, कहानी, कविता।

ईर्ष्या, द्वेष, कुंठा, निंदा
मानव मन के सबसे पहले अक्षर हैं
इनसे आगे न बढ़ पाना
खाली पेट और नग्न देह की
पहली सीढ़ी पर खड़े रह जाने जाने जैसा है
प से पहिया और र से राकेट बनाकर
चाँद पर पहुंचना निजी निर्णय।

कृत्रिमता अच्छी चीज है
जैसे प्रेम।

~राहुल

जिंदगी का फ़साना


जिंदगी का
ये ही फ़साना
कभी गिराना
कभी उठाना...
उठने की ही शर्त है गिरना
ठोकर ठोकर गति पकड़ना
जीवन उसका जीना मरना
सीखा जो बस संभल के चलना

काम एक से, नाम एक से
गांव, गली, समाज एक से
मंत्र एक से, ईष्ट एक से
हाथ पांव सब अंग एक से
दो फिर भी कभी नही एक से...
एक ने सब खोकर भी पाया
एक ने संचित सभी लुटाया

तमस एक से दिवस एक से
आंधी, वर्षण,  रुत एक से
मंजर एक से, रंग एक से
घड़ी के कांटे चलते एक से
पर वक़्त की चालें नही एक से..
जो मिला वो यूं ही मिला नही
जो गिरा नहीं, वो उठा नही।
~राहुल

Saturday, July 16, 2022

माँ...

 

आंच न आने देती
जब तब डांट भी देती
चाहती है वो दिलोजान से...
कम नही किसी वरदान से...

थाली में दाना देती
बच्चों के गाने गाती
सुस्ताती तब इतमिनान से...
चाहती है वो दिलोजान से....

भरी धूप में छांव भांति
कैसे कैसे न बहलाती!
लाती खिलौने वो दुकान से...
चाहती है वो दिलोजान से...

ना कोई बूंद या आंधी
मंजर में न कोई व्याध भी
आयी मुसीबत आसमान से...
छोटी गोरैया भिड़ गयी बाज से...

चित पट की जोड़ घटा
कौन लुटा किससे पिटा
देखें तमाशा सारे मकान से...
बच्चों की मैय्या लड़ी जी जान से...
चाहती है वो दिलोजान से...

~राहुल राजपूत

भाईचारा


मानो चासनी जीभ पर 

गुलाब हो कमीज पर

बातों में शहनाई है

"तू ही मेरा भाई है"

यूं बोल घुसना पेट मे

बिच्छू जैसे रेत में

जोड़ जमा की दुकानदारी

हिसाब लगाती दुनियादारी

कभी इकाई, कभी दहाई

भाईचारा, यही है भाई।


Hi, hello से बाहर आकर

जब भाईचारा बढ़ता जाए

तेरी मेरी बात छोड़कर

किसी "और" को वो लाये

एक कहानी बड़े हिसाब से

सोच समझ कर मुझे सुनाये

एक वक्त था कि "वो" भी 

उसका भाई हुआ करता था 

मुलाकात जब भी होती थी

तपाक से मिला करता था

'दूर रहना उससे भाई

बंदा 'वो' बेकार है भाई

कुत्ते भर औकात नही

मेरी लात भी उसने खायी'


फिर उसने बोला, कुछ अधिकार जमाते

अच्छा हो ये बात, 'उसको' न कभी पता चले

 जय, सलाम, भाईचारा अपना भी बना रहे

दुनिया का दस्तूर ही ऐसा

कहीं कुआ, कहीं खाई है

सच कहता हूँ भाई,

बस तू ही मेरा भाई है...


देखे कैसे कैसे मैंने

छोटे, आधे, ओने पौने, 

जीभ के चाटु, जीभ के पैने

ऊपर चौड़े, भीतर बौने...


बेकार स्वार्थी ढूँढते मतलब

तपाक से आ मिलतेअक्सर

मेरी तासीर अलग है भाई

इसे खाई समझ या गहराई

ये भाईचारा पास तू ही रख

मेरा मुझको मौन मुबारक!


~राहुल

ग़ज़ल

 बिन मांगे कैसी ये मुझे सौगात मिल गयी

तेरी दुआ से घर मे मेरे आग लग गयी


हुक्मरानों के नुमाइंदों! क्या खूब है लिखा

हाय! बिजली आसमाँ से सूखी गिर गयी


मुक़द्दर कम्बख़त! न उनकी नेमत मिली

वो आले खुशनसीबों के रोशन कर गयी


संवेदनाएं शाह की इश्तिहार भर गई

अश्क की सच्चाई पर स्याही में घुल गयी


मैंने पूछा, रूह उसकी मक्का या काशी?

उस रात बिरयानी में जो बकरी तल गयी


~राहुल राजपूत

Wednesday, January 26, 2022

मेरा स्वार्थ

 

मैं इतना स्वार्थी हूँ
की मेरी कपड़ो की प्राथमिकता
कच्छे, मोजे और रूमालों पर
रुक जाती है
ये ही मेरे अपने हैं
बाकी सब तो दूसरों के लिए
दिखाने के लिए
या औरों की नज़रों के लिए
सुंदरता की प्रस्तुति है
इस से मुझ क्या लेना
की दूसरों की आँखों में
में सजूं या चुभूं।
मुझे तो मेरे आनंद से मतलब
मुझे मेरे कच्छे, मोजे और रूमाल से मतलब!

~राहुल राजपूत

Sunday, January 23, 2022

ॐ नमः शिवाय

 

ऊपर शिव है
नीचे शिव है
तेरे मेरे भीतर शिव है
आदि शिव है
अंत भी शिव है
हर संगीत की झन झन शिव है

【ऊँ नम: शम्भवाय,  च शंकराय 
मयस्कराय च नम: शिवाय...
ॐ नमः शिवाय...
जयति शिव नाम
शिव ही जप नाम...
महापापहारं, महादेव देवं
शशांकधारम, वह्नि नयनं,
त्रिनेत्राय, त्रियंबकाये, नमो नमाये
ॐ नमः शिवाय... 】

अथक नाचता तांडव जिसका
इस जग का वो करता धर्ता
जन्म मरण की पाली चलती
उसके डमरू की डम डम पर...

निरत बह रही उसकी सत्ता
वो ही सबकी नियति लिखता
भूत भविष की डोली उठती
उसके चरणों की धम धम पर...

सौम्या शिव है
रौद्र भी शिव है
तेरा मेरा भाग्य शिव है
जीवन शिव है
मरण भी शिव है
सम्पनता की खन खन शिव है

【ऊँ नम: शम्भवाय,  च शंकराय 
मयस्कराय च नम: शिवाय...
ॐ नमः शिवाय...
जयति शिव नाम
शिव ही जप नाम...
महापापहारं, महादेव देवं
शशांकधारम, वह्नि नयनं,
त्रिनेत्राय, त्रियंबकाये, नमो नमाये
ॐ नमः शिवाय... 】

ध्यान में रत महाध्यानी ऐसा
रुके समय भी, मांगे भिक्षा
रंग ऋतुयों की बारी लगती
उसके हृदय की धक धक पर...

सतत बह रही उसकी कृपा
वो ही रस्ता शव से शिव का
करम की करनी सारी छपती
उसके भवूत की कण कण पर...

शांति शिव है
क्रांति शिव है
तेरी मेरी भक्ति शिव है
जागृति शिव है
निंद्रा शिव है
सन्नाटों की सन्न सन्न शिव है

अथक नाचता तांडव जिसका
इस जग का वो करता धर्ता
जन्म मरण की पाली चलती
उसके डमरू की डम डम पर...

संहार झूलता महादेव का
वो जब भी आँखें खोलता
अमर तत्व की लाली मिलती
बम बम भोले की बम बम पर..

【त्रिनेत्राय, त्रियंबकाये, नमो नमाये
ॐ नमः शिवाय... 】

~राहुल राजपूत ©
**************** 

Wednesday, January 19, 2022

जय जय हे! श्री मृत्युंजय..

 

सृष्टि के सृजन से
जीव के मरण से
समय के जनन से
भूख या भरण से
परे है जो..

वो साथ जिसके हो गया
कष्ट उसका खो गया
जन्म मरण के चक्र से
जीव मुक्त हो गया...
शिवा, शिवा, शिवा, शिवा
जय जय हे! श्री मृत्युंजय..

स्वयं ढाल शिव ही हुआ रे
यदि भक्तों पे संकट पड़ा रे
शिवाशिष जिसको मिला रे
धन्य जीवन उसी का हुआ रे
शिवा, शिवा, शिवा, शिवा
जय जय हे! श्री मृत्युंजय...

ब्रह्माण्ड के अतीत से
महाप्रलय के भीत से
द्वेष से या प्रीत से
जग की हर रीत से
परे है जो...

वो मुक्ति का है रास्ता
सांसे सबको बाँचता
मृत्यु ले जनम जहां
स्वयं शिवा ही वो पता

शिवा में जो भी विलय रे
डर उसको कैसा या भय रे
बरसे अंगार या हो प्रलय रे
उसका एक ही केवल ध्येय रे...
शिवा, शिवा, शिवा, शिवा
जय जय हे! श्री मृत्युंजय..

{Chorus in background}
【है ध्यान-रत कैलाशी वो,
     रौद्र रूप, अविनाशी वो
      महादेव तमनाशी वो
      विश्वनाथ वो काशी वो

परे स्वयं से, लीन स्वयं में
परम योग की राशि वो】

शिवा, शिवा, शिवा, शिवा
जय जय हे! श्री मृत्युंजय..

~ राहुल राजपूत© 

Monday, January 17, 2022

जिंदगी!

 

बहुतेरे बुन डाले
जाल तूने जालों-से
पूछ खुद से
ले जबाब सवालों से

क्यों बढ़ रही बेचैनियां
कैसी तेरी परेशानियां
चाहे अगर, सुन पायेगा
खुद की ही जुबानियाँ

आंगन में देखो
बिखरी पड़ी है
सुनहरी धूप
या फुलझड़ी है
क्यारी में कलियाँ
नहा धो खड़ी हैं
तितली भी पीछे
उनके पड़ी हैं

फैली हुई हैं
खुशियां ही खुशियां
रख पल भर किनारे
ख्वाब-ए-गठरिया
यूं ... होने दे रोशन
खुशियों से अँखियाँ

तू फंसा है,
मन की सलाखों में
सच, दिखता वही है
जो चाहे आंखों में

बांधा पिंजरों में
खुद को पहले तालों से
फिर चुने अंधेरे
क्यों पहले उजालों से

बहुतेरे बुन डाले
जाल तूने जालों-से
पूछ खुद से
ले जबाब सवालों से

क्यों बढ़ रही खामोशियाँ
कैसी तेरी मजबूरियां
चाहे अगर, सुन पायेगा
खुद की ही जुबानियाँ

देहली पे दिल के
खुशियां खड़ी हैं
खुद से निकल
देख, क्या जिन्दड़ी है!
मुट्ठी भर सांसे
ही सबको मिली हैं
जी ले तू खुल के
टिक टिक घड़ी है

कितना पागल मन है
खुशियों से खिन्न है
ढूंढे हमेशा ...
ख्वाबों में खुशियां
सबसे बड़ी हाँ....
ये ही उलझन है
बावरा ऐसा
ये तेरा मन है

~Rahul Rajput (c) 

Saturday, January 8, 2022

मुक्तक

 

लम्हा लम्हा जीने को
दिल तक हल्का होने को
पंछी सा उड़ जाने को
फिर से तेरा बन जाने को
क्या क्या न मैं कर जाऊँ
तेरी हाँ में जी जाऊँ
तेरी ना में मिट जाऊँ।

~राहुल राजपूत

प्रेम...


'तुम' को 'मैं' में घोल न पाया
मन के तम में देख न पाया
संग जीने का सरल तरीका
'तुम' और 'मैं' को 'हम' करना था!
पल भर ठहर के सोचा होता
हाथ पकड़कर ही चलना था!

दूर बहुत आ पहुंचे थे हम
नाप रहे थे दूरी को कम
गोमुख से निकले नीर धवल को
कहां पता, सागर मथना था!
पल भर ठहर के सोचा होता
अर्ध मार्ग से ही मुड़ना था!

चाँद, समंदर, तारे, अम्बर
पुष्प, बगीचे, प्रीत के मंजर
खींच हृदय से ये सब मुझको
अहसासों में तेरे भरना था!
पल भर ठहर के सोचा होता
गिफ्ट चॉकलेट ही करना था!

हर छत पर मोर नही आते
हैं सुकृत ही साथी पाते
हाय! किस्मत का ये नजराना
नजर अंदाज नही करना था!
पल भर ठहर के सोचा होता
तुमको मंगल ही गिनना था!

नोक झोंक में जीवन व्यतीत
बिन इसके भी क्या अतीत?
जब किन्तु क्रोध ने तुम्हे तपाया
मुझको बस बदली बनना था!
पल भर ठहर के सोचा होता
रोषित नयनों पर मरना था!

वह प्रेम नही जो कहकर मांगे
देन-लेन सा व्यवहार में ढालें
यदि अंतर में झाँका होता
भाव समर्पण का बढ़ना था 
प्रेम प्लावित नयनों में तिरता
स्नेह निमंत्रण ही पढ़ना था!

~राहुल राजपूत

जरुरत नही है ...

  मुझे अब तेरी जरुरत नहीं है तेरे प्यार की भी ख्वाहिश नहीं है कहानी थी एक जिसके किरदार तुम थे कहानी थी एक  जिसके किरदार हम थे अपना हिस्सा बख...