Saturday, September 7, 2019

चाँद के द्वार पर

रात मैं बैठा महि पर चाँदनी की छाँव,
देखने को गगन में चाँद का स्वभाव|
उद्दिग्न मन या कि भावुक? वो ही जाने,
किन्तु नयनों में था उसके एक अचरज भाव!


मैंने पूछा, रजनी-राजा बात क्या है?
मैं यहां और तू वहाँ, फिर साथ क्या है?
आ रहा मनु-पुत्र सपनों को फलित करने,
बोल तो स्वागत में उसके सौगात क्या है?


माना सदियों से रहा तू देखता नर को,
चांदनी में बैठ, गढ़ते सपनो के घर को,
तूने कितनी बार बोला, है मनुज पागल,
ख्वाबों में ही छू सकेगा नित तेरे दर को?


किन्तु वह तो आज चढ़कर सपनों की सीढ़ी,
आ गया तेरे ही घर तक लांघ सब दूरी,
करो स्वागत मनुज का हे निशा-स्वामी!
सुनो तुम भी मनुज की यह विजय भेरी।
                             
                              ....राहुल राजपूत

Chandrayan Mission-2

No comments:

Post a Comment

जरुरत नही है ...

  मुझे अब तेरी जरुरत नहीं है तेरे प्यार की भी ख्वाहिश नहीं है कहानी थी एक जिसके किरदार तुम थे कहानी थी एक  जिसके किरदार हम थे अपना हिस्सा बख...