Saturday, December 26, 2020

संस्कृति

 तुम बेफिजूल की बातें न करो

औरत हो, घर चलाओ।

हमारे परिधान हमारी संस्कृति हैं
ब्लाउज और साड़ी में जेबें नही होती।

उसने जबाब दिया - क्या दोगले इंसान हो
पैंट शर्ट तो जैसे सनातनी परिधान है।

अब उसके पास दो ही ऑप्शन हैं
या तो अपनी औरत को भी पैंट शर्ट दिला दे
या ब्लाउज में जेबें गढ़वा दे।

लेकिन उसकी औरत ने साफ कर दिया है-
हमारे परिधान हमारी संस्कृति हैं
ब्लाउज और साड़ी में जेबें नही होती।

जब से संस्कृति का ढोल बजना बंद है
जीवन दोनो का जैसे गीत, रुबाई छंद है।

~Rahul

Sunday, December 20, 2020

करमजली

 मत भूलो करमजली,

तुम एक factory हो

जिस से उत्पाद बनते हैं।

उत्पाद की गुडवत्ता ही 
factory की पहिचान है
सम्मान है, अभिमान है ।

दो बेटियों के बाद उसने
फिर से
एक और बेटी जन्मी।
उसकी सास खिन्न है-
आँखें बोलती हैं, करमजली।

एक नारी के लिए 
दूसरी नारी का सारा ममत्व व्यर्थ है।

Sunday, September 27, 2020

हम तुम

 दुनिया बहुत छोटी है। सब ऐसा कहते हैं लेकिन मुझे अभी अभी इस तथ्य का अनुभव हुआ जब मैंने अचानक अंकिता को पोपकोर्न काउंटर पर देखा। मैं भी बिल्कुल उसके पीछे खड़ा था। मुझे भी पोपकोर्न लेनी थी। हालांकि मुझे पोपकोर्न पसंद है लेकिन मल्टीप्लेक्स की पोपकोर्न के दाम जीभ के स्वाद को थोड़ा फीका कर देते हैं। खैर, इसको आप मेरी कंजूसी भी मान सकते हैं।

मैं शायद उसको बहुत गौर से देख रहा था। बिल्कुल वैसे ही जैसे मैं उसे देखता था एक मुस्कुराहट के साथ, मेरी शादी होने से काफी पहले तक। उसने भी पेमेंट किया, पॉपकॉर्न bucket लिया, मुड़ी और फिर एक सेकंड के लिए शायद मुझे देखा होगा, वैसे ही जैसे कोई भी देखता है एक अनजान भीड़ को। 
दूसरा तथ्य जो मुझे समझ आया कि दुनिया जितनी छोटी होती है, उसकी मेमोरी भी उतनी ही छोटी है। ये कोई चिंतन का समय नही था कि मैं ये सोचूँ कि उसने मुझे पहचाना तक नही? हालांकि, मेरे नजरिये से तो हमारे बीच गहरी दोस्ती रही थी। गहरी भी इतनी कि मैं तो यही मानता हूँ कि उसके बांए गाल पर जो तिल है उसका रंग थोड़ा धुंधला पड़ गया था मेरे कारण। मैंने उसे कितनी बार छुआ होगा मुझे भी याद नही, कभी हंसी मजाक में तो कभी प्यार में।
मैंने उसे यदि इतनी आसानी से पहचान लिया था तो इसमें भी कोई विशेष बात नहीं थी जिसका मैं क्रेडिट लूँ । और यदि उसने मुझे नही पहचाना तो इसमें भी कहीं मेरी ही खामी थी। मैं शायद एन्टीसोशल टाइप प्राणी हूँ और शायद नहीं भी। लेकिन एक बात तो पक्की है कि facebook और Instagram जैसे प्लेटफार्म पर तो मैं अपने को antisocial ही कहूंगा। मैंने पिछले ६ साल से कोई अपडेट नहीं किया था अपने फेसबुक पर जबकि फेसबुक पर उसके अपडेट धड़ल्ले से आते हैं. लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि मैं उसकी दुनिया की हलचल से अनजान था . दिन में 2-4 बार तो मैं भी देख लेता हूँ अपना फेसबुक खोलकर, और आज सुबह ही उसकी ताजी ताजी पोस्ट भी देखी थी। उसने अपना एक फ़ोटो अपलोड किया था। शायद recently नई कार ली है। white होंडा अमज़े के साथ बहुत खुश नज़र आ रही थी। लेकिन वो मुश्किल से ही कभी सिंगल फ़ोटो डालती है। लेकिन आज उसने एक्स्ट्रा फ़िल्टर लगे वो फ़ोटो नही डाले थे जिनमें में उसके बाएं गाल का तिल ढूंढने में, मैं हमेशा असफल रहा। 
मैं इतने में पॉपकॉर्न लेता और पेमेंट करता, वो थिएटर में जा चुकी होती। अभी मूवी बची थी। पिक्चर इनटरवल में हम दोनों बाहर आये थे। इसलिए, मैंने उसको आवाज दी - अंकिता।
उसने पलट कर काउंटर की तरफ देखा कि आवाज किसने दी। मैने हल्का सा अपना हाथ उठा कर wave किया। कुछ सेकंड के लिए उसने मुझे देखा फिर उसके चेहरे पर एक मुस्कुराहट खिल उठी।
वो मेरी तरफ आयी और मुझे hi बोला .
मैंने भी मुस्कराकर hi कहा.
"For a moment I could not recognise you. You have so much changed!" उसने कहा.
उसकी अचरज भरी आँखों में मैंने वो सब देखा जो मैंने facebook की दुनिया से छिपा रखा था . पिछले ६ सालों में मैं एक लड़के से अधेड़ उम्र का आदमी बन चुका था .
"but you have not Changed a bit. still looking same as we met last time." उसकी ही सिखाई जुबान में उसकी तारीफ करने से मैं अपने को न रोक पाया। इसको आप फ़्लर्ट भी कह सकते हैं।
एक गुलाबी सी मुस्कान उसके गालों पर पसर गयी बिल्कुल वैसे ही जैसे अंधेरी रातों में चौथाई चाँद दिखता है। blush से कहीं ज्यादा खूबसूरत।
"यहां कैसे?" मैंने उसकी आंखों में सीधे देखते हुए पुछा.
"मूवी देखने आयी हूँ"
"हाँ, हाँ that is obvious. I mean what are you doing in Ghaziabad?"
"I am working in sector 62."
इतने में काउंटर बॉय ने पॉपकॉर्न बकेट काउंटर पर रखकर बोला- sir your order is ready.
यूँ तो मैंने सिर्फ formality में पूछा था कि यहाँ कैसे, वैसे तो facebook ने मुझे सब बता रखा था।तभी एक नौजवान लड़का वाशरूम की तरफ से हमारी और आता दिखा।
तब उसने मुझे उस लड़के से मिलवाया। उसकी हालही में शादी हुई थी। ये भी ज़ुकरबर्ग भैया की मेहरबानी से हमे पहले से ही पता था। लेकिन मैं आपको बता दूं कि ये सब सुनने के बाद आपके मन में यदि मेरे लिए एक negative opinion बनती है जैसे कि stalker या creep टाइप, तो आपको इलाज की जरूरत है। खैर, वो नोएडा में किसी software कंपनी में जॉब करता है। शादी की बात पर मैंने 'यार बताया नही' एक्सप्रेशन देते हुए wow, ग्रेट जैसे शब्दों की गार्निशिंग के साथ many many congratulations कहा। और मुझे लगता है कि ये बताने की जरूरत नही है कि यह कहते हुए मेरी खुशी का तो कोई ठिकाना ही नही था। खुशी दिखाए बिना congratulation कहना तो मैं अपराध मानता हूं और कृपणता की पराकाष्ठा।
छोटे से वार्तालाप के बाद वो स्क्रीन 3 में चली गयी और मैं स्क्रीन 1 में। हमेशा की तरह आज भी हमारी choices अलग थी।
लेकिन आज मुझे एक बात का एहसास हुआ कि हम दोनों ही mature हो चुके थे। मैंने कभी सोचा भी नही था कि हम कभी जिंदगी में मिलेंगे और मिलेंगे भी तो ऐसी मुस्कान के poसाथ। क्या आप कभी मिले हैं अपने ex से इस खूबसूरती के साथ? जैसे कि दो मित्र मिलते हैं एक लंबे अरसे के बाद। शायद मेरी तरह उसने भी सब कुछ भुलाकर सिर्फ वो लम्हे याद रखे थे, जिनमे हम दोस्त थे, crush या lover नही। उस शाम, तकरीबन 6 साल बाद, मेरे फेसबुक पर उसका फिर से मैसेज आया जिसमे लिखा था, lets meet on some weekend.
मैंने अपने को शीशे में देखा और खुद से कहा - क्यों नही! चलो एक बार फिर से दोस्ती दोहराएं हम दोनों...
Disclaimer : उपरोक्त कहानी के सभी पात्र काल्पनिक हैं😁😊

~Rahul Rajput

Thursday, September 24, 2020

मैं किसान हूँ...

 सपनों की दूबे उगती हैं

मेरे भी अंतर मन में
करने को आबाद मेरे यथार्थ को!
या करने को बर्बाद मेरे यथार्थ को?
मैं किसान हूँ...

खेतों में उपजी गैर जरूरी
खरपतवारो की भाँति ही
उखाड़ फेंकता हूँ मैं उनको
उनके कच्चे शैशव में ही
और बचा पाता हूँ मेरे यथार्थ को!
मैं किसान हूँ...

मैं जर्रा जर्रा धुन लेता हूँ
अस्थि पंजर-से शरीर का
कि बन पाऊँ गंगाजल
अपने कुमलहाते परिवार का

हाय! श्रम-वारि से सिंचित 
क्यों अन्न सस्ता बिकता है
किसान हित में ऊपर वाला
क्यों फूटी किस्मत लिखता है?

मैं खुद को भी यदि गाड़ दूं
धान के पौधे जैसा खेत में
और फुट पड़े नन्ही कोपल
मेरे अंग अंग हर एक से
मेरी रूह से सिंचित फलों को
क्या बेच सकोगे बाजार में
तुम सोने-से भाव पर?
यूं रहमत कर पाओगे मेरे परिवार पर?

Tuesday, July 7, 2020

ओ जिंदगी!

करो खेल जितने करने हैं
कंटक जितने भी भरने हैं
कष्ट सखी तुम जितने देना
न राह सुगम फिर भी मांगूंगा
जिंदगी, तुम्हे सदा ही चाहूंगा।

जीवन की तपती राहों में
तुम ला चाहे अंगारे रखना
ब्यथा नयी नित मुझको देना
मैं गीत नया एक फिर गा दूंगा
ओ जिंदगी, यूं मन की कर लूंगा।

दुर्भागी-सा एहसास दिला
अठखेली तुम जितना भी करना
अवरोध जहाँभर पथ में रखना
फिर भी हस्तरेख में न खोजूँगा।
तुमसे अठखेली मैं भी खेलूंगा ।

Sunday, June 14, 2020

मेरा धर्म!

मुझे धर्म का अर्थ नही मालूम
बस इसका स्वरूप पता है
वो स्वरूप जो बिना किताब पढ़े
मैंने देखा है, सबने देखा है-
 समाज को बांटता हुआ
दुकानों पर बिकता हुआ
और चंद लोगों के निजी स्वार्थ हेतु
भाषणों की बलि चढ़ता हुआ।

लेकिन धर्म तो धर्म है
मन को सिल्ली-सी शीतलता देता है
और हृदय को शांति!
इसलिए इसका बाज़ार सदियों से चुस्त है।

किन्तु,
जब मैं अपने मन की जेबें
टटोलता हूँ
मुझे कामभर की शांति, सन्नाटा और मौन
बिना किसी दलाल के मिल जाता है।

बिन बाजार के भी उर शांति पा जाना ही


मेरा धर्म है।

Saturday, May 23, 2020

हिंदुस्तान जा रहा है!

वो देखो सड़क पर कौन जा रहा है,
गरीब है, बदहाल, मजबूर जा रहा है।

घायल पाँवों से उसके खुद-ब-खुद,
सड़कों पर छपता अखबार जा रहा है।

कंधे पे उठाये विकास को, इंसान नही
तरक्की का हुकूमती इश्तिहार जा रहा है।

फटे हाल हैं लेकिन मजबूत इरादे उसके
यारों! मत बोलो वो मजदूर जा रहा है!

शहंशाह-ए-मुल्क के एलान से पहले
बन आत्मनिर्भर वो खुद्दार जा रहा है!

 क्या हुआ गर ये मेरे सपनों का न सही
किसी के सपनों का हिंदुस्तान जा रहा है।

...राहुल राजपूत

Tuesday, May 5, 2020

किस्मत का ताला

चाबी खो गयी है 
मेरे घर की।
इसलिए, 
चाबी वाले को बुलाया है
वो कहता है कि
उस्ताद आदमी है
हर ताले की चाबी तराश सकता है!
वो सिर्फ कहता ही नही,
बल्कि उसने तो अपने टूल बॉक्स पर भी 
लिखवा रखा है- उस्ताद चाबियों का सरताज।

बाकई, तुम तो कलाकार आदमी हो
मैंने कहा, जब थोड़ी ही देर में
 उसने मुझे डुप्लीकेट चाबी पकड़ाई।

उसका मेहनताना देते हुए
और मुस्कुराते हुए मैंने पूछा-
उस्ताद जी!
क्या किस्मत की चाबी भी तराशते हो?
हाँ साहब, वो भी तराश देंगे
उसने कहा
आप बस अपनी किस्मत का ताला ले आईये।

...राहुल राजपूत

Monday, May 4, 2020

'हाँ' कहती है...

अनुरक्त नयनों से
 मेरी प्रीत को 'हाँ' कहती है।
गर्माहट से भरी देह भी
मेरा ही आलिंगन चाहती है।
मुझे पता है, 
रूह-सी अनश्वर 'हाँ'
हृदय में वो लिए बैठी है।
मुझे पता है। 

किन्तु कम्पित अधरों से 
बेमन हो 'ना' कहती है!
है मजबूरी, मुझे पता है!
                ...Rahul

Tuesday, March 31, 2020

COVID-19

सुनो!
है खबर ये मार्च 26 की,
कोई पुरानी नही
है ये इसी साल 20 की
complete lockdown वाले 
सरकारी हुक्म के just बाद की।

social media से पता चला कि
नील गाय घूम रही है
नोएडा की सड़कों पर
और बारहसिंघा हिरण
हरिद्वार की सड़कों पर
दिल्ली जैसी जगहों पर भी
नीला और साफ आसमान है
हवा पहले से कहीं साफ
और सड़कें खाली सुनसान है।

social animal, 
जिसे cultured way में इंसान कहते हैं, 
घरों में कैद है
और animal, जिसका character जैसे पशुता और मवेशिपना इंसानों में ज्यादा देखने को मिलता है,
 सड़कों पर आजाद है
यहाँ तक की picture अनूठी है
'घर मे रहो' नारा ही आबाद है।

फ्लैट नुमा पिंजरों में कैद होने को
इंसान आज लाचार है
क्योंकि देश में 
कोरोना नाम की महामारी 
chinese सामान की तरह
पैर पसारने को बेकाबू है।

लेकिन सड़को पर जानवर कम हैं
ये तो वो जानवर हैं जो जंगलों या खेतो से
शहर में घुस आए हैं मौका पाकर
जैसे इंसान घुस जाता है किसी शहर में
जिंदगी की तलाश में अपने गांव से आकर।
लेकिन गांव से क्या सिर्फ इंसान ही आते हैं?
पशु नही?

फिर मार्च 28 को देश की राजधानी में
सड़कों पर भीड़ जमा हो जाती है
कर्फ्यू के बाबजूद।
इंसानों जैसी दिखने वाली ये भीड़
वास्तव में पशुओं का ही झुंड है
जिसे खदेड़ दिया गया है 
उनके पालन कर्ताओं द्वारा
या राजनैतिक रहनुमाओं द्वारा।
concrete के जंगल में 
पैदावार बंद है।

शायद मेरा इंसान को पशु कह देना
तुम्हारे दिल पर चोट कर दे,
sympathy वाले तुम्हारे होंठो पर 
गुस्से के गुब्बार भर दे,
तब तुम कह उठो-
बड़ा जाहिल आदमी है, totally insesitive ।
मैं तो फिर भी ये ही कहूंगा-
यथार्थ तो कड़वा होता ही है।

यथार्थ यही है कि बरेली में
प्रशासन केमिकल के फुहारों में
इस भीड़ को नहला देता है
बिल्कुल पशुओं की तरह, 
सड़क पर बिठा कर।

याद रखें कि अभी की खबर है
ऑस्ट्रेलिया ने हज़ारो ऊँट मार दिये
क्योंकि,
साले ऊंट इंसानो के हिस्से का पानी पी रहे थे।

Sunday, January 12, 2020

नीर की चिट्ठी



सेवा में,
चंदा मामा।

कब आओगे मुझसे मिलने,
चंदा मामा, चंदा मामा!
मम्मी कहती आसमान में
देखो बेटा, चंदा मामा।

नही आते घर पर क्यों
मिलने मुझसे चंदा मामा?
बार बार मैं मां से पूछूँ
क्यों नही आते चंदा मामा।

मम्मी कहतीं दूर बहुत है
घर, जहां रहते चंदा मामा।
इसीलिए तो कठिन बड़ा,
कि आ पाएं घर पर मामा।

दूर कहाँ, घर से दिखते हो
झूठ बोलती मम्मी, है ना?
देहरादून दिखता न घर से
फिर भी आ जाते तनु मामा।

तनु मामा जब भी आते,
लाते सुंदर खेल खिलौना।
जब आओगे मुझसे मिलने
तुम भी लाना कोई खिलौना।

कभी कभी तुम खुश लगते,
गोल गोल जैसे गुब्बारा।
और कभी गायब रहते हो,
इसका क्या राज तुम्हारा।

घर में अकेले ही रहते हो?
कहाँ रहते हैं नानी नाना?
मम्मी कहतीं गए हुए हैं
मामी ढूंढने नानी नाना।

जो कुछ कहती हैं मम्मी, 
क्या वो सब सच है मामा?
अभी तक मामी ढूंढ रहे हैं
सच! हा हा, हमारे मामा।

मैंने पूछा- क्यों नही दिन में
दिखते हैं मेरे चंदा मामा?
मम्मी बोली- पापा के जैसे ही
ऑफिस में रहते हैं मामा।

पापा संडे को घर रहते,
खाते खाना, गाते गाना।
मामी क्या नाराज न होती,
ऑफिस जाते हो रोजाना!

मिल जाए चिट्ठी जब ये,
तुम हाथ हिला कर बतलाना
नाना नानी को 'जय' कहना,
अब नभ में मामी संग आना।
†*****†******†*******

Wednesday, January 8, 2020

संबंधों की डोर


आसमान में रंग बिरंगी पतंगों को 
तैरते देखता हूँ, 
मन में प्रश्न उठता है
पतंग डोर को ऊपर लेकर जाती है
या डोर पतंग को
क्या मानना है आपका?

ये उनका संबंध है 
जो एक दूसरे को सहारा देकर
चढ़ा देता है एक दूसरे को
नील गगन में।
इस संबंध  में बंधन है
एक सिरा डोर का पतंग के हिसाब से चलता है
तो पतंग की दिशा और गति डोर के हिसाब से।
दोनो का तालमेल ही 
उनके संबधों को कायम रखती है
अन्यथा नील गगन का सपना
बस सपना ही रह जाता है।
टूट जाते हैं सारे बंधन
छूट जाते हैं सारे संबंध।

गुड्डी


उम्र उसकी रही होगी कुछ 19 साल!
नही? तो 20 साल या इक्कीस साल
रोजमर्रा की गरीबी से तंग आकर
वो रोज अपनी माँ से लड़ती है
उसके और उसके सपनों के बीच
गरीबी अभेद्य दीवार की तरह जो खड़ी है।

माँ तो माँ है... 
बस मन ही मन फूट फूट रो लेती है
आखिर करे भी तो क्या करे
उसकी लाडो समझती कहाँ है।
वो माँ है लक्ष्मी तो नही!

गरीब के सपने पता है ना?
इतने छोटे और mediocre
कि उन्हें सपना कहना असंगत है
लेकिन,
उसके लिए तो ये ही सपने है
क्योंकि,
इससे बड़े सपने न तो 
उसकी आँखों मे समा सकते हैं
और न ही उसमे हिम्मत है 
बड़े सपने पालने की।

आज मौहल्ले में शोर मच उठा
गुड्डी ने फांसी लगा ली
मां की साड़ी से पंखे में लटककर।

मैं भी दौड़ कर गया
देखा- दरवाजा तोड़कर उसे उतार लिया गया था
सांसे चल रहीं थी,
गले पर नील पड़े हुए थे
और डॉक्टर साहब भी बुला लिए गए थे

उसका भाग्य या दुर्भाग्य
कि गुड्डी की जान बच गयी।

वो अब माँ से नही लड़ती है
शांत रहती है, 
उसने उस कमरे में जाना भी बंद कर दिया
जहां उसने फांसी लगाई थी
क्योंकि उस पंखे से अभी भी लटकी हुई है
उसके सपनों की लाश।

Wednesday, January 1, 2020

विरह

दिसंबर की सर्द शाम में,
उतार लिए थे दस्ताने तुमने
और उन्हें रख लिया था,
अपनी जैकेट के पॉकेट में।

आंखों में भरकर एक रहस्य
बड़ी पहेली, अनसुलझा सा,
मेरे सिल्ली से सुन्न हाथों को 
फिर तुमने थाम लिया था
जब मैंने पूछा- ये विरह क्यों?

जितना था मैं रोक सका
फिर भी कुछ छींटे अश्रु बनकर
आ गालों पर बैठ गयी
उर में झरते निर्झर से छल कर।

तुम मौसम की तरह जमी रहीं
एक आंसू न आंखों से पिघला
मन को तुमने बांध लिया था,
मैं टूट गया था जैसे अबला।

कितनी आसानी से सब कुछ
बदल लिया अपने को तुमने
माना साझा की थी शामें
हँस हँसकर कितनी ही हमने।

चेहरे से स्मित चिन्हों को,
या विरह के दुख, दर्दों को,
उर के घटते बढ़ते स्पंदनों को,
या वेकल साँसों के जन्मों को,
सब कुछ मिटा दिया था तुमने।

बिन पूछे, तुम पूछ रहीं थी- तुम कौन?
मैं फिर से अनजान खड़ा था, मौन।

'मेरे' से 'अनजान' बनाने के करतब में
सब कुछ सही किया तुमने, मेरे हमदम
पर शायद तुम धोना भूल गयी थी
अपने नर्म नर्म हाथों से 'अपनापन'।

                    --- राहुल राजपूत


जरुरत नही है ...

  मुझे अब तेरी जरुरत नहीं है तेरे प्यार की भी ख्वाहिश नहीं है कहानी थी एक जिसके किरदार तुम थे कहानी थी एक  जिसके किरदार हम थे अपना हिस्सा बख...