Monday, January 13, 2014
Monday, January 6, 2014
मोक्ष
चर्चा होती है,
गलियों में, मोहल्लों में, चौराहो पर
खरे वादो की, सपनो की, सुनहरे कल की
और फिर,
उमड़ पड़ता है जन शैलाव
धधक उठता है इंकलाब !
फिर एक दिन,
प्राची से उगने वाला पुराना सूरज
नई रश्मियों को जन्म देता है
रात रानी- सुमन दिन भर चहकते हैं
आक के फूल भी गुलाब से महकते है
संवेदनाओ के लहू से सिंचित इंकलाब,
पहुँच जाता है सत्ता की कुर्सी पर !
परन्तु, सत्ता संवेदनाओ से नहीं चलती
वरन उसको जरुरत होती है विवेक की
बैठ जाता है कोई भारी भरकम बुद्धिजीवी,
फिर इंकलाब के ऊपर विवेकी बन कर
इंकलाब दम तोड़ देता है
फिर से जन्म लेने को
फिर से मोक्ष पाने को !
गलियों में, मोहल्लों में, चौराहो पर
खरे वादो की, सपनो की, सुनहरे कल की
और फिर,
उमड़ पड़ता है जन शैलाव
धधक उठता है इंकलाब !
फिर एक दिन,
प्राची से उगने वाला पुराना सूरज
नई रश्मियों को जन्म देता है
रात रानी- सुमन दिन भर चहकते हैं
आक के फूल भी गुलाब से महकते है
संवेदनाओ के लहू से सिंचित इंकलाब,
पहुँच जाता है सत्ता की कुर्सी पर !
परन्तु, सत्ता संवेदनाओ से नहीं चलती
वरन उसको जरुरत होती है विवेक की
बैठ जाता है कोई भारी भरकम बुद्धिजीवी,
फिर इंकलाब के ऊपर विवेकी बन कर
इंकलाब दम तोड़ देता है
फिर से जन्म लेने को
फिर से मोक्ष पाने को !
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