Saturday, July 16, 2022

ग़ज़ल

 बिन मांगे कैसी ये मुझे सौगात मिल गयी

तेरी दुआ से घर मे मेरे आग लग गयी


हुक्मरानों के नुमाइंदों! क्या खूब है लिखा

हाय! बिजली आसमाँ से सूखी गिर गयी


मुक़द्दर कम्बख़त! न उनकी नेमत मिली

वो आले खुशनसीबों के रोशन कर गयी


संवेदनाएं शाह की इश्तिहार भर गई

अश्क की सच्चाई पर स्याही में घुल गयी


मैंने पूछा, रूह उसकी मक्का या काशी?

उस रात बिरयानी में जो बकरी तल गयी


~राहुल राजपूत

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