Friday, January 8, 2010

मन के मेरे मनमौजी पंछी..

मन के मेरे मनमौजी पंछी
मैंने तुझको महसूस किया
यहाँ उड़े कभी बहाँ उड़े
चंचलता का संचार किया
पल में नभ में पल में तल में
तूने सब साकार किया
भूत भविष्य के अंतर को
तूने शून्य आकर दिया

कभी स्मृति के दरवाजे
पर तू दस्तक देता है
मेरे अतीत के पन्नों को
फिर से तू पढबाता है
और कभी सपनो में तू
मीठी सैर कराता हैहाथ पकड़ मधुशाला में
मुझे मधुपान कराता है

ख्वावों के महलों में मैंपरियों से मिल आता हूँ
हाथ पकड़ दिव्या मैं तेरा
अपना प्यार जताता हूँसंग तेरे बारिश में मैं
जी भर भीगा करता हूँ
और तेरे मृग नयनों में
अपना किस्सा पढ़ता हूँ

बैठ तेरे पंखो पर मैं
दुनिया घूमा करता हूँ
जाकर बचपन में मैं
तितली पकड़ा करता हूँ
बचपन की हर एक शरारत
मुझको प्यारी लगती है
फूल तोडना चींटी मारना
आदत प्यारी लगती है
मेरी बचकानी हरकत पर
माँ गुस्सा हो जाती है
डांट लगाकर मुझको फिर
सीने से चिपकाती है

हर एक दफा हर बार मुझे
तू धोखा दे जाता है
नहीं उडूँगा और दूर तक
कहकर तू रुक जाता है
खुशियों के आँगन से सीधा
सच की दुनिया में आ जाता हूँ
धोखा देगा , जानता हूँ मैं
फिर भी तेरे संग उड़ जाता हूँ

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हर पत्थर शिवलिंग नही होता......

मिला दे मुझे मेरी दिल-ए-चाहत से
अब और इंतज़ार नहीं होता

सुना है, सब खेल है नसीब का
मगर नसीब का कोई दोष नहीं होता

सुनाऊ किसको न तेरे होने का गम
मेरे गम में कोई सरीक नही होता

बस एक तेरा ही सहारा है खुदा
सुना है, तू भी मददगार नहीं होता

मगर कुछ खास है मुझ में भी
पर हर पत्थर शिवलिंग नही होता

Thursday, January 7, 2010

जिन्दा सा हूं मैं ....

किनारा पास इतना हाथ से छू लूँ मगर
दरिया में बहती एक कश्ती सा हूं मैं

संग तेरे बहने की चाहत है मुझे
बहता है तू , फिर भी ठहरा सा हूं मैं

सुनता हूं छन छन तेरे आने की साकी
मुझको नहीं मिलती, टूटे प्याले सा हूं मैं

फूल खिलते मैं भी देखूं आँगन में अपने
सावन में बिना पत्तों की हरियाली सा हूं मैं

देखता हूं आइना ,फिर सोचता हूं तुझे
याद में तेरी आज भी जिन्दा सा हूं मैं

जरुरत नही है ...

  मुझे अब तेरी जरुरत नहीं है तेरे प्यार की भी ख्वाहिश नहीं है कहानी थी एक जिसके किरदार तुम थे कहानी थी एक  जिसके किरदार हम थे अपना हिस्सा बख...