Friday, December 4, 2009

मैं

देख झलक अपनी दर्पण में
मैं आश्चर्यचकित हो उठता हूँ
क्या यही है मेरा सच्चा रूप
जिसे नित्य संवारा करता हूँ
प्रश्नों के दल-दल में फंसा
मैं "मैं" को ढूंडा करता हूँ
"मैं" नही है केवल एक देह
"क्या हूँ मैं?"प्रश्न हमेशा करता हूँ
मैं शक्तिपुंज हूँ,मैं बल हूँ
मैं तेज हूँ , मैं ओज हूँ
मैं अमर हूँ ,मैं अजर हूँ
मैं आनंदित हूँ,मैं असीमित हूँ
क्योंकि, मैं अनंत अनादि
परमानन्द प्रभु का हिस्सा हूँ ........
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Thursday, December 3, 2009

सब कुछ तुम में है...................

व्यक्ति का व्यक्तित्व
व्यक्ति के विचारों से है
चाहे तो वह संकुचित
विचारधारा की जंजीरों में
ले अपने को जकड़ !
और चाहे तो
वृक्ष की भांति
बन जाए विशाल !
वृक्ष-जो पक्षियों को घर
राहगीरों को छाया
फल-फूल देता है
कर्तव्य परायण
और परोपकार का
अनूठा उदहारण !
निःस्वार्थ ,
प्राणवायु लुटाता, जो
वरन
इतना सरल इतना विनम्र
काटने वाले को भी
अन्तिम साँस तक
देता है छाया
व्यक्ति की सफलता
व्यक्ति के प्रयत्नों से है
चाहे तो बैठा रहे
हाथ पर हाथ धर कर
और निहारे
हाथों की लकीरों को
करे इंतजार
भाग्य फल का !
चाहे तो समुद्र से
चलकर
पा ले नदी के उदगम को
छू ले अम्बर की
सीमाओं को
करे नए युग का
निर्माण !
क्योंकि ,
तुम ही सब कुछ हो
सब कुछ तुम में है
बस जरुरत है तो
आत्म साक्षात् ,
आत्म परिष्कार,
आत्म मूल्यांकन की ..........................
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जरुरत नही है ...

  मुझे अब तेरी जरुरत नहीं है तेरे प्यार की भी ख्वाहिश नहीं है कहानी थी एक जिसके किरदार तुम थे कहानी थी एक  जिसके किरदार हम थे अपना हिस्सा बख...