Wednesday, June 7, 2023

जरुरत नही है ...

 

मुझे अब तेरी जरुरत नहीं है
तेरे प्यार की भी ख्वाहिश नहीं है
कहानी थी एक
जिसके किरदार तुम थे
कहानी थी एक 
जिसके किरदार हम थे
अपना हिस्सा बखूबी तुमने निभाया 
तेरे ही लिए मैंने भी गीत गाया !

बिना अंत के हर कहानी अधूरी
हमारी कहानी भी हुई आज पूरी 
किरदारों का होता भविष्य ही है 
कलाकारों का सच नेपथ्य ही है 

कहानी ख़त्म,पर्दा ढल भी चुका है
स्क्रिप्ट का पन्ना जल भी चुका  है 

मुझे कोई तुझसे शिकायत नहीं है 
दर्द-ए-जुदाई कोई क़यामत नहीं है !

~राहुल 

Monday, May 1, 2023

आओ दिल दुखाने को ही सही

 

आओ दिल दुखाने को ही सही
आओ! आकर इंकार करो, ये  भी सही 

देखूं 
वो निगाहें जिनको 
क्या क्या न कहा 
जंगल-सी वे घनी
जिनमे पल पल भटका 
आओ आँखों में डुबाने को ही सही 
आओ! आकर इंकार करो, ये भी सही

सुनो 
जब से गया है तू
क्या  ही मैं बताऊँ 
सुखन या गीत कोई 
बिन तेरे कैसे गाऊं 
आओ फिर से यूं रुलाने को ही सही
आओ! आकर इंकार करो, ये भी सही

देखो 
कौन है वो जिसका 
ख्वाब दिन रात रहा
आँखों में तिरता सा 
हु-ब-हु तुझ ही सा
आओ मेरा भ्रम मिटाने को ही सही
आओ, आकर सब झूट कहो, ये भी सही 
आओ दिल दुखाने को ही सही
आओ! आकर इंकार करो, ये  भी सही

~राहुल 


मुक्तक


जो भी मिला वो ही खुदा का नेक इरादा है
उसकी नेमत माने तो, ये हद से ज्यादा है 
तू अकेला मैं अकेला, सब आधा आधा है 
क्या ही राजा, क्या प्रजा, क्या ही प्यादा है ?

~राहुल 

Saturday, March 18, 2023

मेरे रकीब को पता नहीं है

मेरे रकीब को पता नहीं है 
वो स्याही है काजल नहीं है 

तुमसे पहले वो मेरा था 
चेहरा उसका असल नहीं है 

बातें वफ़ा की मत करना 
रस्म-ए-वफ़ा आजकल नहीं है

मिलना बिछड़ना दस्तूर है 
कोई ताल्लुक अज़ल नहीं है 

उसकी सोहबत में जाना 
प्यार की शर्त वसल नहीं है.

बहुत मीठी है उसकी बोली
ग़ज़ल सी है पर ग़ज़ल नहीं है 

सब कुछ होना कुछ भी नहीं
खुदा की गर फ़ज़ल नहीं है. 

~ rahul
अज़ल = शाश्वत, वस्ल = मिलन , फ़ज़ल =कृपा 

Wednesday, March 8, 2023

होली का रंग जी भर देखा

 

मेरे चेहरे ने होली का रंग जी भर देखा 
और नजरिया रखने वालों ने बस मुझको बेरंग देखा 

भाई ने अपना, माँ ने लाड में दुबला देखा 
यार दोस्तों की मंडली ने वही पुराना हुड़दंग देखा 

ख्वाब उकेरती उसकी आँखे जादूगरनी 
मैंने उसकी आँखों में हर रंग जीवन का संग संग देखा 

जग सीमा तय करता आया, हे हिरनी 
जब जब लैला ने खुद का बंन्धन मजनू के संग संग देखा 

पुरुषवाद की बेड़ी तोड़ो, जीवन जननी!
मनुवाद को, आडम्बर को निपट नराधम बेढंग देखा 

चश्म-ए-बद से दो दो हाथ करो, मोहिनी!
न्याय व्यवस्था, सरकारों को बीच चौराहे अध् नंग देखा

अलमस्त दीवानों ने दुनिया को सतरंग देखा
और सिकंदर जैसों ने जग को इक मैदान-ए-जंग देखा 

~राहुल 

Friday, March 3, 2023

क़त्ल-ए-आम करती है

 

क़त्ल-ए-आम करती है वो नश्तर-सी आँखों से
बड़े बेचैन लगते हो मिलन को उस कातिल से

जो कहना था कह डाला इशारों ही इशारों में 
कोई खुश था, कोई लौटा बड़ा मायूस महफ़िल से 

भंवर इतना घना था कि मेरा डूबना तय था
खुदा ही था; बचाने जो मुझे आया साहिल से 

अहमियत कम ही रखता है हुनर-ए-खास का होना 
मगर ज्यादा जरुरी है दिखें किरदार काबिल-से 

ये मुमकिन है घने जंगल सलामत पार कर जाओ 
अक्सर सांप डसते हैं निकल आस्तीनों के बिल से

तू ही अकेला है नहीं जो उम्रभर नौकरी करता 
बचत के नाम पर एक घर बना पाता है मुश्किल से

~Rahul

Friday, February 17, 2023

तुम्हारा चेहरा बता रहा है

 

छिपा हुआ था जो भी अंदर 
अक्षर अक्षर सुना चुके हो
तुम्हारा चेहरा बता रहा है 
इश्क़-दरिया नहा चुके हो 

अगर ख़ुशी का चेहरा होता 
हू-ब-हू वो तुम्हारे होता 
झलक रहा है निगाहों से 
अनमोल कुछ पा चुके हो 

आब ओ हवा बदल चुकी है
मन में खुशबू बिखर रही है 
तुम्हारा चलना बता रहा है 
अपना इरादा जता चुके हो 

छिपाओ इत्र छिपता कहाँ है 
हाल तेरा मुकम्मल बयां है 
कौन है वो जिसकी हाँ में
अपनी हाँ तुम मिला चुके हो 

~राहुल 

मुक्तक

 

बेबजह तेरे ऐब को बेनकाब करता रहा 
हाय! घाटे का हिसाब बेहिसाब करता रहा 
तेरा मिलना ही खुदा की इनायत थी 
बेसबब ही काफिराना जज्बात करता रहा!

~राहुल 

Friday, December 23, 2022

राम

दीवार पर  लिखा 'राम'
राम नहीं है
वह है सिर्फ कुछ  स्याही
और शब्द विज्ञान से जन्मी छाप!

आदमी शब्द को पहचानता है
पहले आकार से, फिर नाम से 
तब जन्मता है शब्द जिब्हा से

शब्द की आत्मा उच्चारण है
और आत्म की खोज राम!

'गुलाब' को गुलाब पढ़ना, शब्द विज्ञान है 
किन्तु मन में सुगंध का भर जाना,  राम है |

~Rahul

Sunday, September 4, 2022

जूते के काटने पर

 

जब मनुष्य ने उसे खोजा
वह वरदान साबित हुआ
उसने मनुष्य की यात्रा को
बहुत आसान बना दिया
तेरे और मेरे जैसे अनेकों को
वो नित पंहुचा रहा है
अपनी अपनी मंज़िल।

लेकिन उसे कभी वो सम्मान नही मिला
जो उसे मिलना चाहिए
उसे सिर्फ नीचा रखा गया
बाहर सीढ़ियों पर,
बाकी भिखारियों की तरह...
उसे मंदिर में जाने की अनुमति नही।

जब दाबतों में लोग पंक्तिबद्ध बैठे होते हैं
वो शामियाने के बाहर पड़ा रहता है
आंखे गड़ाये आसमान की तरफ
भगवान शायद कभी उसके मन की भी सुने।

रात में जब मैं सोता हूँ
वो पूरी रात मानो करता है
मेरी चारपाई की
निःस्वार्थ चौकसी!

कभी कभी स्वार्थी मानुस ने
उसका स्वार्थमय उपयोग भी किया
भरी सभायों में उसे पहुँचा यागया है
मंचों पर....
कुर्सी पर बिठाने को नही
कुर्सी पर बैठे नेता के तमाचा धरने को
फिर नेपथ्य में खो जाने को।

सरकारी दस्ताबेज आपको नही बताएंगे
लेकिन भगदड़ों में सबसे ज्यादा मौतें
उसी ने सही हैं।

मुझे बुरा नही लगा
आज जब मेरे पैर में
जूते ने काटा...
इसमे जूते की क्या गलती, गलती मेरी है
जूते के हिसाब से जो होनी थी, क्या मेरी तैयारी है?

उसके अहसानों के तले
मेरे पुरखे और उनके पुरखे तक
नख शिख तक दबे हुए हैं, मानो तो...
वरना दो कौड़ी के जूते तेरी औकात ही क्या
जब तुझसे पहले ही कितने नर नारी
ऊँचो के नीचे धसे हुए हैं, मानो तो...
तू पैरों की जूती, तुझमे कोई बात ही क्या?

किसी राजा ने यदि कभी जूतों को सम्मान दिया
वो हैं भरत, पादुकाओं को जिसने अपने शीश लिया
राम पादुका से पहले, वो भी जूते हैं
सच कि राजा रंक सब उनको छूते हैं।

~राहुल

Saturday, July 30, 2022

प्रेम


नग्न देह और खाली पेट
प्रकृति के अ, आ हैं
क से कपड़ा, ख से खाना
र से रोटी, प से पाना
प्रकृति की शेष वर्णमाला।
इसके आगे जो भी है वो कृत्रिम है
लेकिन कृत्रिमता कभी परम नही
इसका उद्गम भी प्रकृति ही है
जैसे शब्दकोष और वर्णमाला।

कृत्रिमता जीवन को सुगम करती है
जैसे शब्दकोश से विचारों की अभिव्यक्ति...
और इससे आगे गीत, कहानी, कविता।

ईर्ष्या, द्वेष, कुंठा, निंदा
मानव मन के सबसे पहले अक्षर हैं
इनसे आगे न बढ़ पाना
खाली पेट और नग्न देह की
पहली सीढ़ी पर खड़े रह जाने जाने जैसा है
प से पहिया और र से राकेट बनाकर
चाँद पर पहुंचना निजी निर्णय।

कृत्रिमता अच्छी चीज है
जैसे प्रेम।

~राहुल

जरुरत नही है ...

  मुझे अब तेरी जरुरत नहीं है तेरे प्यार की भी ख्वाहिश नहीं है कहानी थी एक जिसके किरदार तुम थे कहानी थी एक  जिसके किरदार हम थे अपना हिस्सा बख...