Wednesday, January 26, 2022

मेरा स्वार्थ

 

मैं इतना स्वार्थी हूँ
की मेरी कपड़ो की प्राथमिकता
कच्छे, मोजे और रूमालों पर
रुक जाती है
ये ही मेरे अपने हैं
बाकी सब तो दूसरों के लिए
दिखाने के लिए
या औरों की नज़रों के लिए
सुंदरता की प्रस्तुति है
इस से मुझ क्या लेना
की दूसरों की आँखों में
में सजूं या चुभूं।
मुझे तो मेरे आनंद से मतलब
मुझे मेरे कच्छे, मोजे और रूमाल से मतलब!

~राहुल राजपूत

Sunday, January 23, 2022

ॐ नमः शिवाय

 

ऊपर शिव है
नीचे शिव है
तेरे मेरे भीतर शिव है
आदि शिव है
अंत भी शिव है
हर संगीत की झन झन शिव है

【ऊँ नम: शम्भवाय,  च शंकराय 
मयस्कराय च नम: शिवाय...
ॐ नमः शिवाय...
जयति शिव नाम
शिव ही जप नाम...
महापापहारं, महादेव देवं
शशांकधारम, वह्नि नयनं,
त्रिनेत्राय, त्रियंबकाये, नमो नमाये
ॐ नमः शिवाय... 】

अथक नाचता तांडव जिसका
इस जग का वो करता धर्ता
जन्म मरण की पाली चलती
उसके डमरू की डम डम पर...

निरत बह रही उसकी सत्ता
वो ही सबकी नियति लिखता
भूत भविष की डोली उठती
उसके चरणों की धम धम पर...

सौम्या शिव है
रौद्र भी शिव है
तेरा मेरा भाग्य शिव है
जीवन शिव है
मरण भी शिव है
सम्पनता की खन खन शिव है

【ऊँ नम: शम्भवाय,  च शंकराय 
मयस्कराय च नम: शिवाय...
ॐ नमः शिवाय...
जयति शिव नाम
शिव ही जप नाम...
महापापहारं, महादेव देवं
शशांकधारम, वह्नि नयनं,
त्रिनेत्राय, त्रियंबकाये, नमो नमाये
ॐ नमः शिवाय... 】

ध्यान में रत महाध्यानी ऐसा
रुके समय भी, मांगे भिक्षा
रंग ऋतुयों की बारी लगती
उसके हृदय की धक धक पर...

सतत बह रही उसकी कृपा
वो ही रस्ता शव से शिव का
करम की करनी सारी छपती
उसके भवूत की कण कण पर...

शांति शिव है
क्रांति शिव है
तेरी मेरी भक्ति शिव है
जागृति शिव है
निंद्रा शिव है
सन्नाटों की सन्न सन्न शिव है

अथक नाचता तांडव जिसका
इस जग का वो करता धर्ता
जन्म मरण की पाली चलती
उसके डमरू की डम डम पर...

संहार झूलता महादेव का
वो जब भी आँखें खोलता
अमर तत्व की लाली मिलती
बम बम भोले की बम बम पर..

【त्रिनेत्राय, त्रियंबकाये, नमो नमाये
ॐ नमः शिवाय... 】

~राहुल राजपूत ©
**************** 

Wednesday, January 19, 2022

जय जय हे! श्री मृत्युंजय..

 

सृष्टि के सृजन से
जीव के मरण से
समय के जनन से
भूख या भरण से
परे है जो..

वो साथ जिसके हो गया
कष्ट उसका खो गया
जन्म मरण के चक्र से
जीव मुक्त हो गया...
शिवा, शिवा, शिवा, शिवा
जय जय हे! श्री मृत्युंजय..

स्वयं ढाल शिव ही हुआ रे
यदि भक्तों पे संकट पड़ा रे
शिवाशिष जिसको मिला रे
धन्य जीवन उसी का हुआ रे
शिवा, शिवा, शिवा, शिवा
जय जय हे! श्री मृत्युंजय...

ब्रह्माण्ड के अतीत से
महाप्रलय के भीत से
द्वेष से या प्रीत से
जग की हर रीत से
परे है जो...

वो मुक्ति का है रास्ता
सांसे सबको बाँचता
मृत्यु ले जनम जहां
स्वयं शिवा ही वो पता

शिवा में जो भी विलय रे
डर उसको कैसा या भय रे
बरसे अंगार या हो प्रलय रे
उसका एक ही केवल ध्येय रे...
शिवा, शिवा, शिवा, शिवा
जय जय हे! श्री मृत्युंजय..

{Chorus in background}
【है ध्यान-रत कैलाशी वो,
     रौद्र रूप, अविनाशी वो
      महादेव तमनाशी वो
      विश्वनाथ वो काशी वो

परे स्वयं से, लीन स्वयं में
परम योग की राशि वो】

शिवा, शिवा, शिवा, शिवा
जय जय हे! श्री मृत्युंजय..

~ राहुल राजपूत© 

Monday, January 17, 2022

जिंदगी!

 

बहुतेरे बुन डाले
जाल तूने जालों-से
पूछ खुद से
ले जबाब सवालों से

क्यों बढ़ रही बेचैनियां
कैसी तेरी परेशानियां
चाहे अगर, सुन पायेगा
खुद की ही जुबानियाँ

आंगन में देखो
बिखरी पड़ी है
सुनहरी धूप
या फुलझड़ी है
क्यारी में कलियाँ
नहा धो खड़ी हैं
तितली भी पीछे
उनके पड़ी हैं

फैली हुई हैं
खुशियां ही खुशियां
रख पल भर किनारे
ख्वाब-ए-गठरिया
यूं ... होने दे रोशन
खुशियों से अँखियाँ

तू फंसा है,
मन की सलाखों में
सच, दिखता वही है
जो चाहे आंखों में

बांधा पिंजरों में
खुद को पहले तालों से
फिर चुने अंधेरे
क्यों पहले उजालों से

बहुतेरे बुन डाले
जाल तूने जालों-से
पूछ खुद से
ले जबाब सवालों से

क्यों बढ़ रही खामोशियाँ
कैसी तेरी मजबूरियां
चाहे अगर, सुन पायेगा
खुद की ही जुबानियाँ

देहली पे दिल के
खुशियां खड़ी हैं
खुद से निकल
देख, क्या जिन्दड़ी है!
मुट्ठी भर सांसे
ही सबको मिली हैं
जी ले तू खुल के
टिक टिक घड़ी है

कितना पागल मन है
खुशियों से खिन्न है
ढूंढे हमेशा ...
ख्वाबों में खुशियां
सबसे बड़ी हाँ....
ये ही उलझन है
बावरा ऐसा
ये तेरा मन है

~Rahul Rajput (c) 

Saturday, January 8, 2022

मुक्तक

 

लम्हा लम्हा जीने को
दिल तक हल्का होने को
पंछी सा उड़ जाने को
फिर से तेरा बन जाने को
क्या क्या न मैं कर जाऊँ
तेरी हाँ में जी जाऊँ
तेरी ना में मिट जाऊँ।

~राहुल राजपूत

प्रेम...


'तुम' को 'मैं' में घोल न पाया
मन के तम में देख न पाया
संग जीने का सरल तरीका
'तुम' और 'मैं' को 'हम' करना था!
पल भर ठहर के सोचा होता
हाथ पकड़कर ही चलना था!

दूर बहुत आ पहुंचे थे हम
नाप रहे थे दूरी को कम
गोमुख से निकले नीर धवल को
कहां पता, सागर मथना था!
पल भर ठहर के सोचा होता
अर्ध मार्ग से ही मुड़ना था!

चाँद, समंदर, तारे, अम्बर
पुष्प, बगीचे, प्रीत के मंजर
खींच हृदय से ये सब मुझको
अहसासों में तेरे भरना था!
पल भर ठहर के सोचा होता
गिफ्ट चॉकलेट ही करना था!

हर छत पर मोर नही आते
हैं सुकृत ही साथी पाते
हाय! किस्मत का ये नजराना
नजर अंदाज नही करना था!
पल भर ठहर के सोचा होता
तुमको मंगल ही गिनना था!

नोक झोंक में जीवन व्यतीत
बिन इसके भी क्या अतीत?
जब किन्तु क्रोध ने तुम्हे तपाया
मुझको बस बदली बनना था!
पल भर ठहर के सोचा होता
रोषित नयनों पर मरना था!

वह प्रेम नही जो कहकर मांगे
देन-लेन सा व्यवहार में ढालें
यदि अंतर में झाँका होता
भाव समर्पण का बढ़ना था 
प्रेम प्लावित नयनों में तिरता
स्नेह निमंत्रण ही पढ़ना था!

~राहुल राजपूत

जरुरत नही है ...

  मुझे अब तेरी जरुरत नहीं है तेरे प्यार की भी ख्वाहिश नहीं है कहानी थी एक जिसके किरदार तुम थे कहानी थी एक  जिसके किरदार हम थे अपना हिस्सा बख...