Tuesday, March 22, 2011

पीर समंदर




मत समझ
व्यर्थ,
निरर्थक
और दिशाहीन
मेरा प्रयास
निरंतर गति
एक लक्ष्य
सतत प्रयास
उठते गिरते
कुछ पाने का
जान जाते तुम,
गर की होती
कोशिश एक बार
जानने की, की
क्या उद्देश्य
कर्मों के पीछे!


मैं पागल सा
शोर मचाता
एक बवंडर
मेरे तल पर
लहरों का अम्बर
तन पर
एक वेदना
हर धड़कन में
आखिर ठहरा
पीर समंदर
जान जाते तुम,
गर की होती
कोशिश एक बार
जानने की, की
क्या राज छुपा
लहरों के पीछे!


पूर्णिमा की
दूध रात्रि में
पूर्ण कांतिमय
यौवन तन में
तुम जब भी आये,
मेरे गीले चक्षु
तेज प्रकाश में
देख सकोगे
इस भ्रम में,
क्यूँ मैं इतना
उछला हूँ
जान जाते तुम,
गर की होती
कोशिश एक बार
जानने की, की
क्या मतलब
हरकतो के पीछे!



ocean wants to express his feelings to moon in the full moon night but who is there to feel his feelings???

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