Friday, October 22, 2010

कोई मुझे बतलाये तो





कितना विस्तृत अम्बर है
और कहाँ तक उसकी सीमा
कहाँ से उगती है भानु किरण
फिर और कहाँ छिप जाती है
कोई मुझे बतलाये तो

आखिर....
हम ठहरे कुएं के मेंढ़क !

पेड़ो की शाखों की रोनक
कौन उड़ा ले जाता है
और कुछ दिन के बाद पुनः
क्यूँ वापस दे जाता है
नभ में उड़ने वाले पंछी
किस तारे पर रहते हैं
नभ से भू और भू से नभ
क्या क्या संदेशें लाते हैं
कोई मुझे बतलाये तो
आखिर...
हम ठहरे कुएं के मेंढ़क !

क्या होता है सडको पर, जो
अक्सर ढोल नगाड़े बजते हैं

और कभी अचानक से गलियों में
क्यूँ सन्नाटा छा जाता है
बोर्डर से चलती गोली की
आवाज़ तो मुझको आती है
क्या होता है बोर्डर पर
कोई मुझे बतलाये तो
आखिर...
हम ठहरे कुएं के मेंढ़क !

4 comments:

  1. दूर खड़ा मैं अकिंचन,
    निर्विकार भाव से सोचता हूँ,
    वक़्त ने लम्बी दौड़ लगायी है,
    व्यथित रहूँ या उसको पकडूँ,
    कोई मुझे बतलाये तो....

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  2. kya kavita hai baba maan gaye... mazaa aa gaya. likhate raho aur hame padhate raho :)

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  3. saahi rajput kya macha rahe ho....ab to ek kitab publish kara hi sakte ho..

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