Sunday, September 1, 2019

किस्मत का पिता

खराद पर लौह चढ़ता,
ताम्र, पीतल या जस्ता,
आग में  रजत पकता,
आग में कनक तपता।
कुछ नया बनने को,
कुछ रूप गढ़ने को,
बाज़ार की मांगों पर,
बेशक खरा उतरने को!

तत्व विशेषता धातु की
केवल अपनी होती है!
किन्तु बाज़ारी मापदंडों पर,
उसे बेशक खरा बनाती है,
उसकी किस्मत!
कि किन हाथों से गढ़ा गया,
किन मशीनों पर चढ़ा गया,
प्रथम प्रस्तुति को उसका,
कितना अभिमान जड़ा गया।
और तब,
निखर के आती है चमक,
तत्व की असली कीमत!

मेरा मेरे नवजात शिशु को
बड़े भोलेपन से कह देना,
देखेंगे! ये क्या है लाया,
अपनी किस्मत का गहना!
सच बोलूं मैं, यह तो मेरी,
निपट जड़ता का आइना है।
मेरा उसका पिता होना ही,
उसकी किस्मत का बायना है!

तत्व विशेषता तो केवल,
किस्मत का एक हिस्सा है।
बाकी सब कुछ तो तेरी मेरी,
कारीगरी का किस्सा है!

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