Tuesday, April 8, 2014

छद्म धर्म

(१)

मंदिरो, मस्जिदो, गुरुद्वारों
और भगवान के उन तमाम आलो में
जहाँ तू और मैं खुदा ढूंढ़ने जाते हैं
सच माने तो, वहाँ  बस ढोंग होता है

मेरे घर की ताखों में तो,
अचार के बोट, बाम की शीशी, मिट्टी के तेल की बोतल,
लाण्टेन, मोमबत्ती  और दियासलाई जैसी चीजे मिलती हैं
वो अलग बात है  मैं लाण्टेन को खुदा कह दू और तू मान जाये 
तब मैं धर्म बन जाऊ, लाण्टेन खुदा और तू कट्टर अनुयायी
 मेरा समझा देना और तेरा मान लेना, बस यही धर्म है!!!


 (२)

असली धर्म के दर्शन तो बस कभी कभी होते हैं
न तो ये  दीये कि रौशनी में नज़र आता है
और न ही अगरवत्ती कि टिम टिम में,
 इसके दर्शन के लिए तो किसी चिंगारी का भड़कना जरूरी है

इत्र और धूप की गंध में इसकी असली खुशबू
शायद कभी दिमाग तक चढ़  ही नहीं पाती ,
जब ये  सड़को पर उतरता है अपनी हवस को
तब पता चलता है कि इसकी गंध घिनौनी है

तू अपने मज़हब  की खातिर जान दे देता है
और मैं धर्म यज्ञ की खातिर जीवन आहुति
ये धर्म मज़हब ही तो है जो समय से पहले,
बड़ी बेहरहमी से इच्छा के विरुद्ध दे  देता है,
मोक्ष-  जीवन का शाश्वत लक्ष्य ………।   

~ RR

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