Monday, January 13, 2014

पतंगे

(1)
इठलाती सी लहराती सी
मद्दम मद्दम इतराती सी
उठती हैं रंगीन पतंगे,
नभ नें मिलने मधुमासी सी

(2)
मैं प्रीतम तुम मेरी प्रेयसी
फिर तेरी मेरी दूरी कैसी!
मिलने को आतुर पतंगे
नहीं जानती किस्मत कैसी?  

(3)
जहाँ होता है प्रभु का वास
कहो गगन अम्बर आकाश
लड़ती हैं सरल पतंगे, सब
इंसानी चालो का प्रयास !


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