कभी तो झाँक खिड़की से तेरा ऊपर ठिकाना है।
तेरी गलियों में कब से फिर रहा तेरा दिवाना है ॥
दिखा दे इक झलक अपनी तू बस इतना रहम कर दे ।
दिखा कर मुख मुझे छिप जा जहां खुद को छिपाना है।
मोहब्बत हाट में बिकती न उल्फत खेत में उगती ।
मोहब्बत दिल का सौदा है न ये कोई किराना है।
कहाँ है वो मुझे मालूम नहीं नामो निशां उसका ।
यकीं है हर समय मुझ पर उन आँखों का निशाना है।
नहीं मुमकिन तेरे अंदाजे उल्फत को समझ पाऊँ ।
भला कैसे मैं ये जानू तुझे कैसे रिझाना है ।।
यहाँ बस बीच में उसने गिरा रखा है इक पर्दा।
वजह हंगामे की सारी ये पर्दे का गिराना है ।
गुलिस्तां प्यार का है ये जिसे कहते हैं हम दुनियाँ ।
मगर तुम याद ये रखना गुलिस्तां ये विराना है
~Samar Singh
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