Sunday, March 2, 2025

ग़ज़ल

    ----------ग़ज़ल--------

न लगे ठोकर कहीं आसान  क्या। 

पर संभल जाये न वो इंसान क्या।


हो अगर वो साथ और दिल में जनून। 

ये बबंडर,   आंधियां,  तूफान   क्या।। 


वक्त   पर    तामील   न  होवे    अगर । 

फिर किसी का भी हो वो फरमान क्या।।


जो  गुरु  की  बात  को   न सुन सके। 

और सब जग की सुने वो कान क्या।। 


दान  देकर  हो  गया अभिमान  गर। 

चाहे कितना भी दिया पर दान क्या।। 


वो  भला  कैसे  रहे अहसान  मंद। 

जो न जाने चीज है अहसान क्या।। 


जान  ली  तूने  सभी दुनियां  मगर। 

असलियत में जो यहां है जान क्या।।


तेरे   सीने  में  मुहब्बत    है     अगर । 

फिर ' समर ' कोई यहां अन्जान क्या।। 

~Samar Singh  ©

                 2122  2122  212

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