----------ग़ज़ल--------
न लगे ठोकर कहीं आसान क्या।
पर संभल जाये न वो इंसान क्या।
हो अगर वो साथ और दिल में जनून।
ये बबंडर, आंधियां, तूफान क्या।।
वक्त पर तामील न होवे अगर ।
फिर किसी का भी हो वो फरमान क्या।।
जो गुरु की बात को न सुन सके।
और सब जग की सुने वो कान क्या।।
दान देकर हो गया अभिमान गर।
चाहे कितना भी दिया पर दान क्या।।
वो भला कैसे रहे अहसान मंद।
जो न जाने चीज है अहसान क्या।।
जान ली तूने सभी दुनियां मगर।
असलियत में जो यहां है जान क्या।।
तेरे सीने में मुहब्बत है अगर ।
फिर ' समर ' कोई यहां अन्जान क्या।।
~Samar Singh ©
2122 2122 212
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