काश ऐसा हो कि अपनी जां निकाल दूँ ।
जिंदा कर दूँ तुझको अपनी जान डाल दूँ
कितना ही कह लो कहीं होता नहीं असर।
हो असर तो हर जगह ही कर बबाल दूँ
क्या बताऊँ हाय कितनी आग सीने में।
इतनी कि इस आग से सागर उबाल दूँ।
बिन कहे ही बात दिल की जानता है वो।
फिर क्यों उसके सामने मैं कर सवाल दूँ ॥
मांगता मैं और क्या उसने यूं जब कहा
दे दिया दिल और बता तुझको क्या माल दूँ ॥
जिंदगी बीती समर' कुछ कर नहीं सका।
जो बची अब इसमें ही कुछ कर कमाल दूँ ।
-Samar Singh
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