Saturday, March 1, 2025

राधा विरह गीत

 

(मुखड़ा)

कान्हा बिन सूना मोरा मन,

कैसे कटे ये विरह की रैन।


(अंतरा 1)

यमुना किनारे तेरी यादें,

लहर लहर में तेरी बातें ।

बंसी की धुन कौन सुनाये,

इस दिल को कैसे आये चैन 


कान्हा बिन सूना मोरा मन,

कैसे कटे ये विरह की रैन।


(अंतरा 2)

वृंदावन की गलियाँ सूनी,

फूलों में भी खुशबू नहीं।

तेरे बिना सब कुछ है फीका,

आ लौट आ, अ मोरे श्याम।


कान्हा बिन सूना मोरा मन,

कैसे कटे ये विरह की रैन।



(अंतरा 3)

सखियों को ना समझा पाऊँ 

कैसे मैं ये दर्द सहूँ।

मन का दीपक बुझा पड़ा है 

मेरे बचे बस दो जलते नैन।


कान्हा बिन सूना मोरा मन,

कैसे कटे ये विरह की रैन।


(अंतरा 4)

तेरे बिना  है चाँद अधूरा,

थके पथिक का कौन सहारा 

पायल की रुनझुन रोती है,

मैं दिवानी राह तकूँ दिन रैन । 


कान्हा बिन सूना मोरा मन,

कैसे कटे ये विरह की रैन।


~राहुल राजपूत 

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