Friday, December 23, 2022
राम
Sunday, September 4, 2022
जूते के काटने पर
Saturday, July 30, 2022
प्रेम
जिंदगी का फ़साना
Saturday, July 16, 2022
माँ...
भाईचारा
मानो चासनी जीभ पर
गुलाब हो कमीज पर
बातों में शहनाई है
"तू ही मेरा भाई है"
यूं बोल घुसना पेट मे
बिच्छू जैसे रेत में
जोड़ जमा की दुकानदारी
हिसाब लगाती दुनियादारी
कभी इकाई, कभी दहाई
भाईचारा, यही है भाई।
Hi, hello से बाहर आकर
जब भाईचारा बढ़ता जाए
तेरी मेरी बात छोड़कर
किसी "और" को वो लाये
एक कहानी बड़े हिसाब से
सोच समझ कर मुझे सुनाये
एक वक्त था कि "वो" भी
उसका भाई हुआ करता था
मुलाकात जब भी होती थी
तपाक से मिला करता था
'दूर रहना उससे भाई
बंदा 'वो' बेकार है भाई
कुत्ते भर औकात नही
मेरी लात भी उसने खायी'
फिर उसने बोला, कुछ अधिकार जमाते
अच्छा हो ये बात, 'उसको' न कभी पता चले
जय, सलाम, भाईचारा अपना भी बना रहे
दुनिया का दस्तूर ही ऐसा
कहीं कुआ, कहीं खाई है
सच कहता हूँ भाई,
बस तू ही मेरा भाई है...
देखे कैसे कैसे मैंने
छोटे, आधे, ओने पौने,
जीभ के चाटु, जीभ के पैने
ऊपर चौड़े, भीतर बौने...
बेकार स्वार्थी ढूँढते मतलब
तपाक से आ मिलतेअक्सर
मेरी तासीर अलग है भाई
इसे खाई समझ या गहराई
ये भाईचारा पास तू ही रख
मेरा मुझको मौन मुबारक!
~राहुल
ग़ज़ल
बिन मांगे कैसी ये मुझे सौगात मिल गयी
तेरी दुआ से घर मे मेरे आग लग गयी
हुक्मरानों के नुमाइंदों! क्या खूब है लिखा
हाय! बिजली आसमाँ से सूखी गिर गयी
मुक़द्दर कम्बख़त! न उनकी नेमत मिली
वो आले खुशनसीबों के रोशन कर गयी
संवेदनाएं शाह की इश्तिहार भर गई
अश्क की सच्चाई पर स्याही में घुल गयी
मैंने पूछा, रूह उसकी मक्का या काशी?
उस रात बिरयानी में जो बकरी तल गयी
~राहुल राजपूत
Wednesday, January 26, 2022
मेरा स्वार्थ
Sunday, January 23, 2022
ॐ नमः शिवाय
Wednesday, January 19, 2022
जय जय हे! श्री मृत्युंजय..
Monday, January 17, 2022
जिंदगी!
Saturday, January 8, 2022
मुक्तक
प्रेम...
Holi Geet
होली है रंगीले, मेरा रंग दे जिया होली है रंगीले, मेरा रंग दे जिया आजा आज खेलें रंग आजा पिया होली है रंगीले, मेरा रंग दे जिया आजा आज खेले...
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ऊपर शिव है नीचे शिव है तेरे मेरे भीतर शिव है आदि शिव है अंत भी शिव है हर संगीत की झन झन शिव है 【ऊँ नम: शम्भवाय, च शंकराय मयस्कराय च नम: ...
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जब हर जूनून की वजह तू, क्यूँ न फिर हाथों की लकीरों में तेरा नाम लिख दूं... हर जिक्र में है शामिल तू, क्यूँ न फिर वक़्त के हर पन्न...