आंच न आने देती
जब तब डांट भी देती
चाहती है वो दिलोजान से...
कम नही किसी वरदान से...
थाली में दाना देती
बच्चों के गाने गाती
सुस्ताती तब इतमिनान से...
चाहती है वो दिलोजान से....
भरी धूप में छांव भांति
कैसे कैसे न बहलाती!
लाती खिलौने वो दुकान से...
चाहती है वो दिलोजान से...
ना कोई बूंद या आंधी
मंजर में न कोई व्याध भी
आयी मुसीबत आसमान से...
छोटी गोरैया भिड़ गयी बाज से...
चित पट की जोड़ घटा
कौन लुटा किससे पिटा
देखें तमाशा सारे मकान से...
बच्चों की मैय्या लड़ी जी जान से...
चाहती है वो दिलोजान से...
~राहुल राजपूत
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