Saturday, January 8, 2022

प्रेम...


'तुम' को 'मैं' में घोल न पाया
मन के तम में देख न पाया
संग जीने का सरल तरीका
'तुम' और 'मैं' को 'हम' करना था!
पल भर ठहर के सोचा होता
हाथ पकड़कर ही चलना था!

दूर बहुत आ पहुंचे थे हम
नाप रहे थे दूरी को कम
गोमुख से निकले नीर धवल को
कहां पता, सागर मथना था!
पल भर ठहर के सोचा होता
अर्ध मार्ग से ही मुड़ना था!

चाँद, समंदर, तारे, अम्बर
पुष्प, बगीचे, प्रीत के मंजर
खींच हृदय से ये सब मुझको
अहसासों में तेरे भरना था!
पल भर ठहर के सोचा होता
गिफ्ट चॉकलेट ही करना था!

हर छत पर मोर नही आते
हैं सुकृत ही साथी पाते
हाय! किस्मत का ये नजराना
नजर अंदाज नही करना था!
पल भर ठहर के सोचा होता
तुमको मंगल ही गिनना था!

नोक झोंक में जीवन व्यतीत
बिन इसके भी क्या अतीत?
जब किन्तु क्रोध ने तुम्हे तपाया
मुझको बस बदली बनना था!
पल भर ठहर के सोचा होता
रोषित नयनों पर मरना था!

वह प्रेम नही जो कहकर मांगे
देन-लेन सा व्यवहार में ढालें
यदि अंतर में झाँका होता
भाव समर्पण का बढ़ना था 
प्रेम प्लावित नयनों में तिरता
स्नेह निमंत्रण ही पढ़ना था!

~राहुल राजपूत

No comments:

Post a Comment

Bank Account

 Neer has been insisting us to open his bank account since couple of months. So, Neha visited Axis bank, which is located within my society ...