बिन मांगे कैसी ये मुझे सौगात मिल गयी
तेरी दुआ से घर मे मेरे आग लग गयी
हुक्मरानों के नुमाइंदों! क्या खूब है लिखा
हाय! बिजली आसमाँ से सूखी गिर गयी
मुक़द्दर कम्बख़त! न उनकी नेमत मिली
वो आले खुशनसीबों के रोशन कर गयी
संवेदनाएं शाह की इश्तिहार भर गई
अश्क की सच्चाई पर स्याही में घुल गयी
मैंने पूछा, रूह उसकी मक्का या काशी?
उस रात बिरयानी में जो बकरी तल गयी
~राहुल राजपूत
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