बहुतेरे बुन डाले
जाल तूने जालों-से
पूछ खुद से
ले जबाब सवालों से
क्यों बढ़ रही बेचैनियां
कैसी तेरी परेशानियां
चाहे अगर, सुन पायेगा
खुद की ही जुबानियाँ
आंगन में देखो
बिखरी पड़ी है
सुनहरी धूप
या फुलझड़ी है
क्यारी में कलियाँ
नहा धो खड़ी हैं
तितली भी पीछे
उनके पड़ी हैं
फैली हुई हैं
खुशियां ही खुशियां
रख पल भर किनारे
ख्वाब-ए-गठरिया
यूं ... होने दे रोशन
खुशियों से अँखियाँ
तू फंसा है,
मन की सलाखों में
सच, दिखता वही है
जो चाहे आंखों में
बांधा पिंजरों में
खुद को पहले तालों से
फिर चुने अंधेरे
क्यों पहले उजालों से
बहुतेरे बुन डाले
जाल तूने जालों-से
पूछ खुद से
ले जबाब सवालों से
क्यों बढ़ रही खामोशियाँ
कैसी तेरी मजबूरियां
चाहे अगर, सुन पायेगा
खुद की ही जुबानियाँ
देहली पे दिल के
खुशियां खड़ी हैं
खुद से निकल
देख, क्या जिन्दड़ी है!
मुट्ठी भर सांसे
ही सबको मिली हैं
जी ले तू खुल के
टिक टिक घड़ी है
कितना पागल मन है
खुशियों से खिन्न है
ढूंढे हमेशा ...
ख्वाबों में खुशियां
सबसे बड़ी हाँ....
ये ही उलझन है
बावरा ऐसा
ये तेरा मन है
~Rahul Rajput (c)
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