लम्हा लम्हा जीने को
दिल तक हल्का होने को
पंछी सा उड़ जाने को
फिर से तेरा बन जाने को
क्या क्या न मैं कर जाऊँ
तेरी हाँ में जी जाऊँ
तेरी ना में मिट जाऊँ।
~राहुल राजपूत
सम्भालो हुस्न को अपने कहीं ज्यादा न हो जाए भला चंगा दिल-ए-नादां न यों आवारा हो जाए नहीं मिला अगर मुझको तब भी कोई गिला नहीं चलो किस्मत अजम...
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