सृष्टि के सृजन से
जीव के मरण से
समय के जनन से
भूख या भरण से
परे है जो..
वो साथ जिसके हो गया
कष्ट उसका खो गया
जन्म मरण के चक्र से
जीव मुक्त हो गया...
शिवा, शिवा, शिवा, शिवा
जय जय हे! श्री मृत्युंजय..
स्वयं ढाल शिव ही हुआ रे
यदि भक्तों पे संकट पड़ा रे
शिवाशिष जिसको मिला रे
धन्य जीवन उसी का हुआ रे
शिवा, शिवा, शिवा, शिवा
जय जय हे! श्री मृत्युंजय...
ब्रह्माण्ड के अतीत से
महाप्रलय के भीत से
द्वेष से या प्रीत से
जग की हर रीत से
परे है जो...
वो मुक्ति का है रास्ता
सांसे सबको बाँचता
मृत्यु ले जनम जहां
स्वयं शिवा ही वो पता
शिवा में जो भी विलय रे
डर उसको कैसा या भय रे
बरसे अंगार या हो प्रलय रे
उसका एक ही केवल ध्येय रे...
शिवा, शिवा, शिवा, शिवा
जय जय हे! श्री मृत्युंजय..
{Chorus in background}
【है ध्यान-रत कैलाशी वो,
रौद्र रूप, अविनाशी वो
महादेव तमनाशी वो
विश्वनाथ वो काशी वो
परे स्वयं से, लीन स्वयं में
परम योग की राशि वो】
शिवा, शिवा, शिवा, शिवा
जय जय हे! श्री मृत्युंजय..
~ राहुल राजपूत©
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