जब मनुष्य ने उसे खोजा
वह वरदान साबित हुआ
उसने मनुष्य की यात्रा को
बहुत आसान बना दिया
तेरे और मेरे जैसे अनेकों को
वो नित पंहुचा रहा है
अपनी अपनी मंज़िल।
लेकिन उसे कभी वो सम्मान नही मिला
जो उसे मिलना चाहिए
उसे सिर्फ नीचा रखा गया
बाहर सीढ़ियों पर,
बाकी भिखारियों की तरह...
उसे मंदिर में जाने की अनुमति नही।
जब दाबतों में लोग पंक्तिबद्ध बैठे होते हैं
वो शामियाने के बाहर पड़ा रहता है
आंखे गड़ाये आसमान की तरफ
भगवान शायद कभी उसके मन की भी सुने।
रात में जब मैं सोता हूँ
वो पूरी रात मानो करता है
मेरी चारपाई की
निःस्वार्थ चौकसी!
कभी कभी स्वार्थी मानुस ने
उसका स्वार्थमय उपयोग भी किया
भरी सभायों में उसे पहुँचा यागया है
मंचों पर....
कुर्सी पर बिठाने को नही
कुर्सी पर बैठे नेता के तमाचा धरने को
फिर नेपथ्य में खो जाने को।
सरकारी दस्ताबेज आपको नही बताएंगे
लेकिन भगदड़ों में सबसे ज्यादा मौतें
उसी ने सही हैं।
मुझे बुरा नही लगा
आज जब मेरे पैर में
जूते ने काटा...
इसमे जूते की क्या गलती, गलती मेरी है
जूते के हिसाब से जो होनी थी, क्या मेरी तैयारी है?
उसके अहसानों के तले
मेरे पुरखे और उनके पुरखे तक
नख शिख तक दबे हुए हैं, मानो तो...
वरना दो कौड़ी के जूते तेरी औकात ही क्या
जब तुझसे पहले ही कितने नर नारी
ऊँचो के नीचे धसे हुए हैं, मानो तो...
तू पैरों की जूती, तुझमे कोई बात ही क्या?
किसी राजा ने यदि कभी जूतों को सम्मान दिया
वो हैं भरत, पादुकाओं को जिसने अपने शीश लिया
राम पादुका से पहले, वो भी जूते हैं
सच कि राजा रंक सब उनको छूते हैं।
~राहुल
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