जिंदगी का
ये ही फ़साना
कभी गिराना
कभी उठाना...
उठने की ही शर्त है गिरना
ठोकर ठोकर गति पकड़ना
जीवन उसका जीना मरना
सीखा जो बस संभल के चलना
काम एक से, नाम एक से
गांव, गली, समाज एक से
मंत्र एक से, ईष्ट एक से
हाथ पांव सब अंग एक से
दो फिर भी कभी नही एक से...
एक ने सब खोकर भी पाया
एक ने संचित सभी लुटाया
तमस एक से दिवस एक से
आंधी, वर्षण, रुत एक से
मंजर एक से, रंग एक से
घड़ी के कांटे चलते एक से
पर वक़्त की चालें नही एक से..
जो मिला वो यूं ही मिला नही
जो गिरा नहीं, वो उठा नही।
~राहुल
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