परिंदों के जैसा
मैं उड़ रहा हूँ
मुझको पता ना
मैं अब कहाँ हूँ
जब से बना मैं तेरा...
तुम मानो ना मानो
अब ना रहा मैं मेरा...
मेरे रास्तो से
मंजिल भी पूछे
क्यों चल रहा है
क्या तुझको सूझे
जो तुझको पाया
तो पा लिया ये जहां...
तुम मानो ना मानो
अब ना रहा मैं मेरा...
खुला आसमां है
हवा बह रही है
दरख्तों की अपनी
गुफ्तगू हो रही है
तुम हो तो मैं हूँ,
तुम से है जीना मेरा
तुम मानो ना मानो
अब ना रहा मैं मेरा...
~राहुल राजपूत ©
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