नही जानता
कैसे गुजरी
वो रात नशीली
तेरे नैनों-सी
मेरे सवाल का
मिला जबाब था
इश्क़ का पहला
वो इजहार था....
'हाँ' तेरी पाकर
मैं जीता था दुनिया
ख्वाबों पर रंगत
ले आयी तेरी हाँ...
तेरी हाँ में, हंसी के पीछे
छुपी चाल का न कोई इशारा मिला...
वफ़ा को वफ़ा का ना नज़ारा मिला।
ऐसा तोड़ा कि दिल ना दोवारा जुड़ा।
तुम्हे याद नही होगा
दिन साथ में काटे थे
दौड़ गले मिलने
हम छुप छुप आते थे
हम तो वही बुद्धू जो मरते रहे तुमपे
प्यार नया पाकर तुम ऐसे हमे भूले
जनम कोई तुमको जैसे दोबारा मिला
मुझे फूटा नसीबा ऐसा न्यारा मिला।
कि नए जूतों में भी कांटा गहरा लगा।
प्यार के बदले खंजर पाया
बिखरे दिल का मंजर पाया
ओ हरजाई हुस्न नकाबी
रकीब को मेरे पूछे तू भी
खेलने को दिल भी मेरा बेचारा मिला?
वफ़ा को वफ़ा का ना नज़ारा मिला।
ऐसा तोड़ा कि दिल ना दोवारा जुड़ा।
आज मिले हो
कब के बिछड़े
जहां छोड़ा था
हैं वही हम खड़े
मेरे रकीब से
पता चला है
आशिक पिछला
बड़ा बेवफा है
ऐसा भोला
मेरा यार था
बेबजह ही
मेरा प्यार था....
तेज निगाहें, नज्म अदाएं
पहले पहले, दिल बहलाय
ओ बेदर्दी, कट्टर जुल्मी
रकीब को मेरे पूछे तू भी
क़त्ल यूं करके जश्न-ए-बहारा मिला?
वफ़ा को वफ़ा का ना नज़ारा मिला।
ऐसा तोड़ा कि दिल ना दोवारा जुड़ा।
~राहुल राजपूत ©
No comments:
Post a Comment