वो देखो सड़क पर कौन जा रहा है,
गरीब है, बदहाल, मजबूर जा रहा है।
घायल पाँवों से उसके खुद-ब-खुद,
सड़कों पर छपता अखबार जा रहा है।
कंधे पे उठाये विकास को, इंसान नही
तरक्की का हुकूमती इश्तिहार जा रहा है।
फटे हाल हैं लेकिन मजबूत इरादे उसके
यारों! मत बोलो वो मजदूर जा रहा है!
शहंशाह-ए-मुल्क के एलान से पहले
बन आत्मनिर्भर वो खुद्दार जा रहा है!
क्या हुआ गर ये मेरे सपनों का न सही
किसी के सपनों का हिंदुस्तान जा रहा है।
...राहुल राजपूत
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