मुझे धर्म का अर्थ नही मालूम
बस इसका स्वरूप पता है
वो स्वरूप जो बिना किताब पढ़े
मैंने देखा है, सबने देखा है-
समाज को बांटता हुआ
दुकानों पर बिकता हुआ
और चंद लोगों के निजी स्वार्थ हेतु
भाषणों की बलि चढ़ता हुआ।
लेकिन धर्म तो धर्म है
मन को सिल्ली-सी शीतलता देता है
और हृदय को शांति!
इसलिए इसका बाज़ार सदियों से चुस्त है।
किन्तु,
जब मैं अपने मन की जेबें
टटोलता हूँ
मुझे कामभर की शांति, सन्नाटा और मौन
बिना किसी दलाल के मिल जाता है।
बिन बाजार के भी उर शांति पा जाना ही
मेरा धर्म है।
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