उम्र उसकी रही होगी कुछ 19 साल!
नही? तो 20 साल या इक्कीस साल
रोजमर्रा की गरीबी से तंग आकर
वो रोज अपनी माँ से लड़ती है
उसके और उसके सपनों के बीच
गरीबी अभेद्य दीवार की तरह जो खड़ी है।
माँ तो माँ है...
बस मन ही मन फूट फूट रो लेती है
आखिर करे भी तो क्या करे
उसकी लाडो समझती कहाँ है।
वो माँ है लक्ष्मी तो नही!
गरीब के सपने पता है ना?
इतने छोटे और mediocre
कि उन्हें सपना कहना असंगत है
लेकिन,
उसके लिए तो ये ही सपने है
क्योंकि,
इससे बड़े सपने न तो
उसकी आँखों मे समा सकते हैं
और न ही उसमे हिम्मत है
बड़े सपने पालने की।
आज मौहल्ले में शोर मच उठा
गुड्डी ने फांसी लगा ली
मां की साड़ी से पंखे में लटककर।
मैं भी दौड़ कर गया
देखा- दरवाजा तोड़कर उसे उतार लिया गया था
सांसे चल रहीं थी,
गले पर नील पड़े हुए थे
और डॉक्टर साहब भी बुला लिए गए थे
उसका भाग्य या दुर्भाग्य
कि गुड्डी की जान बच गयी।
वो अब माँ से नही लड़ती है
शांत रहती है,
उसने उस कमरे में जाना भी बंद कर दिया
जहां उसने फांसी लगाई थी
क्योंकि उस पंखे से अभी भी लटकी हुई है
उसके सपनों की लाश।
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