क़त्ल-ए-आम करती है वो नश्तर-सी आँखों से
बड़े बेचैन लगते हो मिलन को उस कातिल से
जो कहना था कह डाला इशारों ही इशारों में
कोई खुश था, कोई लौटा बड़ा मायूस महफ़िल से
भंवर इतना घना था कि मेरा डूबना तय था
खुदा ही था; बचाने जो मुझे आया साहिल से
अहमियत कम ही रखता है हुनर-ए-खास का होना
मगर ज्यादा जरुरी है दिखें किरदार काबिल-से
ये मुमकिन है घने जंगल सलामत पार कर जाओ
अक्सर सांप डसते हैं निकल आस्तीनों के बिल से
तू ही अकेला है नहीं जो उम्रभर नौकरी करता
बचत के नाम पर एक घर बना पाता है मुश्किल से
~Rahul
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