Saturday, July 30, 2022

प्रेम


नग्न देह और खाली पेट
प्रकृति के अ, आ हैं
क से कपड़ा, ख से खाना
र से रोटी, प से पाना
प्रकृति की शेष वर्णमाला।
इसके आगे जो भी है वो कृत्रिम है
लेकिन कृत्रिमता कभी परम नही
इसका उद्गम भी प्रकृति ही है
जैसे शब्दकोष और वर्णमाला।

कृत्रिमता जीवन को सुगम करती है
जैसे शब्दकोश से विचारों की अभिव्यक्ति...
और इससे आगे गीत, कहानी, कविता।

ईर्ष्या, द्वेष, कुंठा, निंदा
मानव मन के सबसे पहले अक्षर हैं
इनसे आगे न बढ़ पाना
खाली पेट और नग्न देह की
पहली सीढ़ी पर खड़े रह जाने जाने जैसा है
प से पहिया और र से राकेट बनाकर
चाँद पर पहुंचना निजी निर्णय।

कृत्रिमता अच्छी चीज है
जैसे प्रेम।

~राहुल

जिंदगी का फ़साना


जिंदगी का
ये ही फ़साना
कभी गिराना
कभी उठाना...
उठने की ही शर्त है गिरना
ठोकर ठोकर गति पकड़ना
जीवन उसका जीना मरना
सीखा जो बस संभल के चलना

काम एक से, नाम एक से
गांव, गली, समाज एक से
मंत्र एक से, ईष्ट एक से
हाथ पांव सब अंग एक से
दो फिर भी कभी नही एक से...
एक ने सब खोकर भी पाया
एक ने संचित सभी लुटाया

तमस एक से दिवस एक से
आंधी, वर्षण,  रुत एक से
मंजर एक से, रंग एक से
घड़ी के कांटे चलते एक से
पर वक़्त की चालें नही एक से..
जो मिला वो यूं ही मिला नही
जो गिरा नहीं, वो उठा नही।
~राहुल

Saturday, July 16, 2022

माँ...

 

आंच न आने देती
जब तब डांट भी देती
चाहती है वो दिलोजान से...
कम नही किसी वरदान से...

थाली में दाना देती
बच्चों के गाने गाती
सुस्ताती तब इतमिनान से...
चाहती है वो दिलोजान से....

भरी धूप में छांव भांति
कैसे कैसे न बहलाती!
लाती खिलौने वो दुकान से...
चाहती है वो दिलोजान से...

ना कोई बूंद या आंधी
मंजर में न कोई व्याध भी
आयी मुसीबत आसमान से...
छोटी गोरैया भिड़ गयी बाज से...

चित पट की जोड़ घटा
कौन लुटा किससे पिटा
देखें तमाशा सारे मकान से...
बच्चों की मैय्या लड़ी जी जान से...
चाहती है वो दिलोजान से...

~राहुल राजपूत

भाईचारा


मानो चासनी जीभ पर 

गुलाब हो कमीज पर

बातों में शहनाई है

"तू ही मेरा भाई है"

यूं बोल घुसना पेट मे

बिच्छू जैसे रेत में

जोड़ जमा की दुकानदारी

हिसाब लगाती दुनियादारी

कभी इकाई, कभी दहाई

भाईचारा, यही है भाई।


Hi, hello से बाहर आकर

जब भाईचारा बढ़ता जाए

तेरी मेरी बात छोड़कर

किसी "और" को वो लाये

एक कहानी बड़े हिसाब से

सोच समझ कर मुझे सुनाये

एक वक्त था कि "वो" भी 

उसका भाई हुआ करता था 

मुलाकात जब भी होती थी

तपाक से मिला करता था

'दूर रहना उससे भाई

बंदा 'वो' बेकार है भाई

कुत्ते भर औकात नही

मेरी लात भी उसने खायी'


फिर उसने बोला, कुछ अधिकार जमाते

अच्छा हो ये बात, 'उसको' न कभी पता चले

 जय, सलाम, भाईचारा अपना भी बना रहे

दुनिया का दस्तूर ही ऐसा

कहीं कुआ, कहीं खाई है

सच कहता हूँ भाई,

बस तू ही मेरा भाई है...


देखे कैसे कैसे मैंने

छोटे, आधे, ओने पौने, 

जीभ के चाटु, जीभ के पैने

ऊपर चौड़े, भीतर बौने...


बेकार स्वार्थी ढूँढते मतलब

तपाक से आ मिलतेअक्सर

मेरी तासीर अलग है भाई

इसे खाई समझ या गहराई

ये भाईचारा पास तू ही रख

मेरा मुझको मौन मुबारक!


~राहुल

ग़ज़ल

 बिन मांगे कैसी ये मुझे सौगात मिल गयी

तेरी दुआ से घर मे मेरे आग लग गयी


हुक्मरानों के नुमाइंदों! क्या खूब है लिखा

हाय! बिजली आसमाँ से सूखी गिर गयी


मुक़द्दर कम्बख़त! न उनकी नेमत मिली

वो आले खुशनसीबों के रोशन कर गयी


संवेदनाएं शाह की इश्तिहार भर गई

अश्क की सच्चाई पर स्याही में घुल गयी


मैंने पूछा, रूह उसकी मक्का या काशी?

उस रात बिरयानी में जो बकरी तल गयी


~राहुल राजपूत

Bank Account

 Neer has been insisting us to open his bank account since couple of months. So, Neha visited Axis bank, which is located within my society ...