काटी थी शामें,
कांधों पे तेरे
रखा था हाथों को
हाथों में मेरे
नजरों से सब ही तूने कहा
दिल ने सुनी थी दिल से बयां
तू ही मेरा था आसरा
मैं निंद और तू ख्वाब सा
फिर क्यों
बढ़ता ही गया फासला
मेरी खता का तू इल्जाम दे
ना तोड़ दिल, अंजाम दे
बेवफा का ना यूं नाम दे
ओ पिया...
बता तो सही ऐसा क्या हुआ
दिल ने सुनी थी दिल से बयां
तू ही मेरा था बासरा
मैं रूह और तू सांस-सा
फिर क्यों..
घटता ही गया कारवां
मुझे अपना तू नाम दे
बाहों में फिर से थाम ले
ना जीते जी यूँ जान ले
ओ पिया...
ख्वाब बुन ले फिर से दरमियाँ
दिल ने सुनी थी दिल से बयां
राहुल राजपूत
No comments:
Post a Comment