हाथ पकड़ दिन में जुगनू जब
सूरज को रस्ता दिखलाये
बहशी घुली-सी रातों में जब
चाँद निकलने से घबराये
स्वच्छ हवा पाने को जब
पवन स्वयं ही थक जाये
ऐसी हालत में भी जब
राजा बेफिक्री से सो जाये
लानत है गर मैं चुप बैठूं
मुझको आगे आना होगा
'उठो बढ़ो मत रुको’ का नारा
हम सबको दोहराना होगा
नाकारों की मक्कारी जब
पीठ थापकर शाब्बसी पाए
जुलूसो में शैतानों के जब
जयकारो के नारे गुंजाये
पैसे की बात छोड़ दो जब
दिन दहाड़े इज्जत लुट जाये
ऐसी हालत में भी जब
राजा सुशासन की बीन बजाये
लानत है गर मैं चुप बैठूं
मुझको आगे आना होगा
'उठो बढ़ो मत रुको’ का नारा
हम सबको दोहराना होगा
खातिर माँ की बेटा जब
गोली सीने पर खा जाये
सत्ता के गलियारों में जब
शहादत सिक्को से तौली जाये
और 'वीर भोग्य बसुन्धरा'
मिथ्या ध्येय बनकर रह जाये
ऐसी हालत में भी जब
देश चैन से सो जाये
लानत है गर मैं चुप बैठूं
मुझको आगे आना होगा
'उठो बढ़ो मत रुको’ का नारा
हम सबको दोहराना होगा
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