Saturday, June 9, 2012

ग़ज़ल

जिंदगी के दो राहों पर इंसान बहुत मिल जायेंगे
पर फरेबी के मुखौटों से कब भला  बच पाओगे

कहने को है खुशनुमा अहले  जगत में  सादगी
क्या फिसलते  मन  को काबू में  रख  पाओगे

माना तेरा प्यार है भरे पैमाने सा नशीला, पर
बात होगी गर ताउम्र छलकने से बचा पाओगे

कर  मुहब्बत  शौक से पर जज्बा  इतना रख
ना मिला वो तो  मुहब्बत-ए-पीर  पी  पाओगे

पाने की चाह घनी है तो लुटाने की भी ऊँची रख
ये जिंदगी बाज़ार है ना कोई बिन तराजू पाओगे

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