चाहता हूँ कुछ लिखू तेरे लिए
पर शब्द नहीं ढूंढ पाता हूँ मैं
हर शब्द अदना पड़ जाता है
तेरी विशालता के आगे !
सोचता हूँ.....
हृदय को सागर-सा
आँचल को अम्बर-सा
बोल तेरी विशालता को परिभाषित कर दूं !
सोचता हूँ ....
शीतलता को चांदनी-सा
प्रेम को चासनी-सा
बोल तेरे स्वाभाव को परिभाषित कर दूं !
सोचता हूँ .....
मुस्कान को रोशनी-सा
उदारता को अवनी-सा
बोल तेरे व्यक्तित्व को परिभाषित कर दूं
!
पर तुम कोई बिंदू नहीं
जिसे परिभाषा में बांधा जा सके
शब्दों में तौला जा सके
वल्कि एहसास का उद्गम हो
तुम भावो का सिन्धु हो
मेरे लिए तुम सब कुछ
मेरे सखा मेरे संवल हो
तुम अनमोल हो !
परिभाषा से परे, शब्दों से दूर
प्रेम की गंगा, स्नेह से सराबोर
तुम एहसास हो !
जिसे मैं हमेशा महसूस करता हूँ, माँ
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