क्या कभी तुमने सुनी हैं
वो दर्दमय मिश्रित चीखें
जो आती हैं टकराने से
पत्थरों के इंसानी सरो से
ये चीखें नहीं होती बस इंसानी कंठों से
और तमाशा देखती जनता के झुंडों से
बल्कि इन मिश्रित चीखों में
एक और रूदन सम्मिलित है
गर लहू बहा इंसानी देह से
तो क्या पत्थर रूह रहित है ?
निष्पक्ष नज़रिये से देखें तो
सर पत्थर दोनों ही लथपथ हैं
बेजान भावहीन कहना पत्थर को
बोलो कितना तर्कपूर्ण-न्यायोचित है ?
वो दर्दमय मिश्रित चीखें
जो आती हैं टकराने से
पत्थरों के इंसानी सरो से
ये चीखें नहीं होती बस इंसानी कंठों से
और तमाशा देखती जनता के झुंडों से
बल्कि इन मिश्रित चीखों में
एक और रूदन सम्मिलित है
गर लहू बहा इंसानी देह से
तो क्या पत्थर रूह रहित है ?
निष्पक्ष नज़रिये से देखें तो
सर पत्थर दोनों ही लथपथ हैं
बेजान भावहीन कहना पत्थर को
बोलो कितना तर्कपूर्ण-न्यायोचित है ?
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