Wednesday, April 11, 2012

kavita

दिन तड़पे
राते रोई
वसंत गया
बरसाते आई
मुस्कान एक
होंठो पर लाई
नम आँखे
फिर भर आई
दिन गुज़रा
निशा तम लायी
पर आठ पहर
तू ही छाई
मौसम बदले
ऋतुये आई
पर बनी रही
मेरी तन्हाई
 
 इसलिए कहता हूँ   मित्रों

उसका मुझसे
मेरा उस से
कुछ तो गहरा रिश्ता है
बेमतलब सा
पागल सा
फिर क्यों दिल रिसता है

मेरे ख्वावों के अम्बर पर
अब भी तु ही बसती है
तुमको पाने की धुन में हूँ
अब  ऐसी मेरी हस्ती है

No comments:

Post a Comment

Bank Account

 Neer has been insisting us to open his bank account since couple of months. So, Neha visited Axis bank, which is located within my society ...