दिन तड़पे
राते रोई
वसंत गया
बरसाते आई
मुस्कान एक
होंठो पर लाई
नम आँखे
फिर भर आई
दिन गुज़रा
निशा तम लायी
पर आठ पहर
तू ही छाई
मौसम बदले
ऋतुये आई
पर बनी रही
मेरी तन्हाई
इसलिए कहता हूँ मित्रों
उसका मुझसे
मेरा उस से
कुछ तो गहरा रिश्ता है
बेमतलब सा
पागल सा
फिर क्यों दिल रिसता है
मेरे ख्वावों के अम्बर पर
अब भी तु ही बसती है
तुमको पाने की धुन में हूँ
अब ऐसी मेरी हस्ती है
राते रोई
वसंत गया
बरसाते आई
मुस्कान एक
होंठो पर लाई
नम आँखे
फिर भर आई
दिन गुज़रा
निशा तम लायी
पर आठ पहर
तू ही छाई
मौसम बदले
ऋतुये आई
पर बनी रही
मेरी तन्हाई
इसलिए कहता हूँ मित्रों
उसका मुझसे
मेरा उस से
कुछ तो गहरा रिश्ता है
बेमतलब सा
पागल सा
फिर क्यों दिल रिसता है
मेरे ख्वावों के अम्बर पर
अब भी तु ही बसती है
तुमको पाने की धुन में हूँ
अब ऐसी मेरी हस्ती है
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