Tuesday, March 22, 2011

क्यूँ मैंने तुम्हे प्यार किया था?


ठहरे पानी में जैसे किसी ने
एक तरंग संचार किया था
हृदय-स्पंदन को मेरे मैंने
सम्मुख तेरे एहसास किया था
एक झलक पा कर ही तेरी मैं
क्यूँ दिल अपना हार गया था
क्यूँ मैंने तुम्हे प्यार किया था?

मेरे नैनो में जैसे किसी ने
अक्ष तेरा उभार दिया था
इन्द्र धनुष से रंग चुराकर
रूप तेरा साकार किया था
शाम सवेरे ख्वावों में
क्यूँ तेरा सत्कार किया था
क्यूँ मैंने तुम्हे प्यार किया था?

मेरी खुशियों की खातिर जैसे किसी ने
गलियों को बुहार दिया था
कागा ने भी स्वर में अपने
तेरे आने का प्रमाण दिया था
गुजरोगे इस रस्ते से, इस रहा में
क्यूँ पलकों को न्यौछार दिया था
क्यूँ मैंने तुम्हे प्यार किया था?

हाथ पकड़ धीरे से जैसे किसी ने
तेरे दृग पीने को लाचार किया था
ये मधु नही है, अमृत कह कर
चिर जीवित सुरूर दिया था
जाकर सपनों के आँगन में
क्यूँ चुम्बन स्वीकार किया था
क्यूँ मैंने तुम्हे प्यार किया था?

No comments:

Post a Comment

होली आई

  संग पिया के, संग सजन के, होली आई! गाँव की गलियाँ, रंग में भीगी, होली आई! माटी की ख़ुशबू    महकी, घर-आँगन तक जाने को, रेल चली फिर दूर नगर स...