मेरे रकीब को पता नहीं है
वो स्याही है काजल नहीं है
तुमसे पहले वो मेरा था
चेहरा उसका असल नहीं है
बातें वफ़ा की मत करना
रस्म-ए-वफ़ा आजकल नहीं है
मिलना बिछड़ना दस्तूर है
कोई ताल्लुक अज़ल नहीं है
उसकी सोहबत में जाना
प्यार की शर्त वसल नहीं है.
बहुत मीठी है उसकी बोली
ग़ज़ल सी है पर ग़ज़ल नहीं है
सब कुछ होना कुछ भी नहीं
खुदा की गर फ़ज़ल नहीं है.
~ rahul
अज़ल = शाश्वत, वस्ल = मिलन , फ़ज़ल =कृपा