आज जमीं पर बैठा बेसुद
बसुधा में कुछ खोज रहा
नज़रों में जनमानस की
ये पागल क्या ढूँढ रहा
जनमानस की कथनी का
कुछ फर्क नही पड़ने वाला
जनमानस के लिए समर्पित
नही रुकेगा ये मतवाला
मेरी हर दृष्टि के आगे
मिटटी के विसरित कण हैं
नही डिगेगा साहस मेरा
आज यह मेरा प्रण है
नही रुकुंगा नही थकूंगा
जब तक न तुमको पा लूँ
चाहे मुझको जाना हो
है फैला जहाँ केवल बालू
मेहनत करने वालों को
निश्चित सफलता मिलती है
श्रम-लगन-साहस की कश्ती
हि जलधी नापा करती है
अथक प्रयासों से आखिर
उस पगडण्डी से मिल पाया
चलकर गाँधी ने जिस पर
सत्यअहिंसा पथ दिखलाया
आज मुझे दे दो वचन तुम
धुलित न इसको होने देंगे
पगडण्डी को पकड़े तू चल
जीवन इन्द्रधनुषीय होंगे
लो फिर से मिल गए
गाँधी के कदमों के निशान
चल इन पद-चिन्हों पर तू
कर पथ की पहिचान !!!
बसुधा में कुछ खोज रहा
नज़रों में जनमानस की
ये पागल क्या ढूँढ रहा
जनमानस की कथनी का
कुछ फर्क नही पड़ने वाला
जनमानस के लिए समर्पित
नही रुकेगा ये मतवाला
मेरी हर दृष्टि के आगे
मिटटी के विसरित कण हैं
नही डिगेगा साहस मेरा
आज यह मेरा प्रण है
नही रुकुंगा नही थकूंगा
जब तक न तुमको पा लूँ
चाहे मुझको जाना हो
है फैला जहाँ केवल बालू
मेहनत करने वालों को
निश्चित सफलता मिलती है
श्रम-लगन-साहस की कश्ती
हि जलधी नापा करती है
अथक प्रयासों से आखिर
उस पगडण्डी से मिल पाया
चलकर गाँधी ने जिस पर
सत्यअहिंसा पथ दिखलाया
आज मुझे दे दो वचन तुम
धुलित न इसको होने देंगे
पगडण्डी को पकड़े तू चल
जीवन इन्द्रधनुषीय होंगे
लो फिर से मिल गए
गाँधी के कदमों के निशान
चल इन पद-चिन्हों पर तू
कर पथ की पहिचान !!!