एक था मरकज, एक था कुम्भ
एक निराधम, एक विशुद्ध।
एक आक्रांता, एक सनातन
एक जलालत, एक तथागत।
एक स्वार्थी, एक उदार
एक महामारी, एक उपचार।
वाह मेरे ओ मीडिया-कार!
Democracy के आधार।
नैनन तेरे
सोचो कि ऊपर न कोई जन्नत सोचो कि नीचे न ही कोई दोजख ऊपर जो देखें बस देखें आसमां सोचो की सब ही जियें बस आज में सोचो कि दुनिया ऐस...