सारा मुद्दा गर चन्दन, जनेऊ, कलावा, और रोली का होता
बता तू हि ग़ालिब, जुबाँ से तेरी इश्क़ मुझे फिर कैसे होता !
बता तू हि ग़ालिब, जुबाँ से तेरी इश्क़ मुझे फिर कैसे होता !
सम्भालो हुस्न को अपने कहीं ज्यादा न हो जाए भला चंगा दिल-ए-नादां न यों आवारा हो जाए नहीं मिला अगर मुझको तब भी कोई गिला नहीं चलो किस्मत अजम...
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