खूब सजा काजल आँखों में माथे पर बिंदिया चमकी
देख हुस्न
उसका
खुद
में शीशे में रोनक
दमकी
दरवाजे की हर आहट पर साजन ही आँखों में
आया
बैठ मुंडेरी पर कागा ने जैसे साजन का संदेशा गाया
हाय अभागी उसकी किस्मत! नहीं साजन
आया
किसको क्या कहती वो, जब….
कागा भी निकला झूटा !
पायल रूठ गयी पैरों से आँखों से काजल रूठा
मिलने
का
साजन
से
सपना
शीशे
सा
टूटा
शब् औ सहर का सुन्दर संगम संग सूरज ले आया
रात गुजर कर सुबह ढल गयी पर साजन नहीं आया
बैठी रही वो सुध बुध खो कर उसी चौखट के द्वारे
दे जहाँ गए थे साजन उसकी आँखों में सपने प्यारे
हाय अभागी उसकी राते ! नहीं साजन आया
किसको क्या कहती वो, जब….
साजन ही निकला झूटा !
नीर निरंतर निकला नैनों से जैसे अम्बुघट फूटा
मिलने
का
साजन
से
सपना
शीशे
सा
टूटा
नैनों की मीठी झीलों से नित बहते रहे खारे झरने
यादों के मंजर में साजन आते रहे उनसे मिलने
आनन में अम्बर के जैसे चाँद छिटकना
भूल गया
संग जीने मरने के साजन वादे कसमे तोड़ गया
हाय अभागी उसकी कसमे ! नहीं साजन आया
किसको क्या कहती वो, जब….
वादा ही निकला झूटा !
कंगन रूठ गया बाहों से छाती से मंगल रूठा
मिलने
का
साजन
से
सपना
शीशे
सा
टूटा
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