Saturday, September 29, 2012

सुबह















नींदो के पर्दों  पर जब
चलते रहे सपने प्यारे
अंगड़ाई में करवट लूँ
मन मेरा जगने से हारे
और फिर,
जाने कहाँ से जाता है
मेरी अंगड़ाई के दरमियाँ वो
हर सुबह चिल्लाता हुआ
सुर में बेसुरा  गाता हुआ
मेरे मोबाइल का अलार्म !

 
आँखों को मसलता हुआ
अंगड़ाई से झगड़ता हुआ
देखता हूँ खिड़की  से मेरे
नींद  को  झटकता हुआ
और फिर,
जाने कहाँ से जाती है
मेरी करवटों के दरमियाँ वो
रौशनी-सी दमकती हुई
ताजगी  छिटकती  हुई
वही पुरानी सी नई भौर !


वही पुराना परिचित चेहरा
कभी चंचल कभी मौन सा
है घूरता शीशे के अन्दर से
हमशक्ल   मेरा  खास  सा
और फिर,
जाने कहाँ से  जाती है
मेरे - शीशे के दरमियाँ वो
अंतरमन को  जगाती  हुई 
नए सपनो को सजाती हुई
जीवन की दौड़ में शामिल होने की गुजारिश !


Friday, September 28, 2012

पायल रूठ गयी पैरों से


खूब सजा काजल आँखों में माथे पर बिंदिया चमकी
देख हुस्न  उसका  खुद  में शीशे में  रोनक   दमकी
दरवाजे की हर आहट पर  साजन ही आँखों में  आया
बैठ मुंडेरी पर कागा ने जैसे साजन  का संदेशा  गाया
हाय अभागी उसकी किस्मत! नहीं साजन आया
किसको क्या कहती वो, जब….
कागा भी निकला झूटा !
पायल रूठ गयी पैरों से आँखों से  काजल  रूठा
मिलने  का  साजन  से  सपना  शीशे  सा  टूटा
 

शब् सहर का सुन्दर  संगम  संग  सूरज ले आया
रात गुजर कर सुबह ढल गयी पर साजन नहीं आया
बैठी रही वो सुध बुध खो कर उसी  चौखट  के  द्वारे
दे  जहाँ  गए थे साजन उसकी आँखों में सपने प्यारे
हाय  अभागी उसकी राते ! नहीं साजन आया
किसको क्या कहती वो, जब….
 साजन  ही निकला झूटा !
नीर निरंतर निकला नैनों से जैसे अम्बुघट फूटा
मिलने  का  साजन  से  सपना   शीशे   सा टूटा
 

नैनों की मीठी झीलों से नित  बहते  रहे  खारे  झरने
यादों  के  मंजर में  साजन  आते  रहे  उनसे  मिलने
आनन में अम्बर के जैसे चाँद छिटकना भूल गया
संग जीने मरने के साजन वादे  कसमे तोड़ गया
हाय  अभागी   उसकी  कसमे ! नहीं   साजन  आया
किसको क्या कहती वो, जब….
वादा ही निकला झूटा !
कंगन रूठ गया बाहों  से छाती से मंगल  रूठा
मिलने  का  साजन  से  सपना  शीशे  सा  टूटा

Bank Account

 Neer has been insisting us to open his bank account since couple of months. So, Neha visited Axis bank, which is located within my society ...