गरबे की एक
तरुण संध्या
में
सघन समूह में कितने मुखड़े
नृत्य
के आनंद से सिंचित
खेलें
गरबा डांडिया
पकडे
एक प्यारा मुखड़ा उसी समूह में
बिना डोर ही मुझको जकड़े
जो
नैना से नैना टकरावे
हृदय मेरा फैले फिर सिकुड़े
नैन द्वार से अन्दर
आकर
मन
आँगन पर वो छा
जावे
कारे नैनो की बदरी से
भाव रंजित मेघा बरसावे
खो जाये मन उसकी
धुन में
कौन भला इसको समझावे
गरबे की एक तरुण संध्या में !