Monday, February 16, 2009

दोस्ती.......

दोस्त और दोस्ती पर्याय जिंदगी के ,
अगर दोस्त ही नही,फिर जिंदगी ही क्या?
हम चले दोस्त बनाने सैकडों की भीड़ में
बन गए सब दोस्त मेरे,सब मेरी जिंदगी क्या?
शायद सच हो .....
तो मिल गई कई जिंदगी एक ही जिंदगी में !
सबको सोचा खुदा मेरे,फिर मुझे डर ही क्या?
जिंदगी सब फर्जी निकली जब पड़ी जरुरत जिंदगी की ....
दुःख हुआ गलती पर अपनी,इतनी सस्ती भी जिंदगी क्या?
'जिंदगी दोस्त' नही होता हर किसी के नसीब में .......
तमन्ना है दोस्त की ,समझे जो बिन दोस्त जिंदगी क्या ??

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