सम्भालो हुस्न को अपने कहीं ज्यादा न हो जाए
भला चंगा दिल-ए-नादां न यों आवारा हो जाए
नहीं मिला अगर मुझको तब भी कोई गिला नहीं
चलो किस्मत अजमाइश का खेल दुबारा हो जाए
वो कहते हैं बर्तन हैं तो नैसर्गिक है खटपट हो
अच्छा हो समय रहते बेटों में बंटवारा हो जाए
नेमत क्या होती है पूछो उस रिक्शा वाले से
हाथ अचानक जब ढलान पर कोई सहारा हो जाए
सफर की शर्त तो न थी अकेले बोझ से चलना
न बेहतर हो तेरी नैया मेरा कूल किनारा हो जाए !
हाथ तुम्हारे छूने भर से मिट्टी तक पारस हो जाती
हाय हमारे हाथों में तो हीरा भी बेचारा हो जाए
रहे न कोई भी उम्मीद मगर आँखे तके राहें
न कोई शख्स इस तरह हद से प्यारा हो जाए
पहली पहल कोशिश हो गर फिर भी न चल पाए
तो अच्छा हो वो रिश्ता बिन शर्त न्यारा हो जाए
नमस्ते मेरे शुभचिंतकों ! बेसबब ही सोचते हो
हूँ बेखुदी में क्या मुनाफा क्या ख़सारा हो जाए
~राहुल
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